शीतला अष्टमी या बसौड़ा कब है? जानें इस दिन देवी मां को बासी खाना का भोग क्यों चढ़ाया जाता है?

Dharm Desk

शीतला अष्टमी के दिन विधि-विधान के साथ मां की पूजा करने से निरोगी और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद मिलता है। इस व्रत को करने से चेचक और अन्य गंभीर बीमारियों से मुक्ति मिलती हैं।

होली के बाद चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी का व्रत किया जाता है। इस दिन माता शीतला की पूजा करने और बासी भोजन खाने की परंपरा है। साथ ही शीतला अष्टमी के दिन देवी मां को भी बासी भोजन का ही भोग लगाया जाता है। इसीलिए इसे स्थानीय भाषा में बासौड़ा, बूढ़ा बसौड़ा या बसियौरा नामों से भी जाना जाता है। शीतला अष्टमी विशेष तौर पर मालवा, निमाड़, राजस्थान और हरियाणा के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है। तो आइए जानते हैं कि इस साल शीतला अष्टमी कब मनाई जाएगी। साथ ही जानेंगे कि इस दिन माता रानी को बासी भोजन का भोग क्यों लगाया जाता है। 

शीतला अष्टमी या बसौड़ा डेट और पूजा मुहूर्त

इस साल शीतला अष्टमी या बसौड़ा का त्यौहार 22 मार्च 2025 को मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार, चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ 22 मार्च को सुबह 4 बजकर 23 मिनट पर होगा। अष्टमी तिथि समाप्त 23 मार्च को सुबह 5 बजकर 23 मिनट पर होगा। शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त सुबह 6 बजकर 41 मिनट से शाम 6 बजकर 50 मिनट तक रहेगा। शीतला माता की पूजा अर्चना करने से जातक की समस्त मनोकामनाएं अतिशीघ्र पूर्ण होती हैं। इसके अलावा चेचक आदि से भी माता रानी छुटकारा दिलाती हैं।

शीतला अष्टमी के दिन देवी मां को बासी भोजन का भोग क्यों लगाया जाता है?

माता शीतला को शीतल चीजें अति प्रिय हैं इसलिए देवी मां को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। शीतला माता को मुख्य रूप चावल और घी का भोग ही लगाया जाता है। मगर चावल को शीतलाष्टमी के दिन नहीं पकाया जाता है, बल्कि सप्तमी तिथि के दिन ही बनाकर रख लिया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि शीतला अष्टमी के दिन घर का चूल्हा नहीं जलाना चाहिए और न ही घर में खाना बनाना चाहिए, इसलिए सप्तमी तिथि पर ही सारा खाना और भोग बना लिया जाता है। 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। 

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