सत्यकथा : पीता था मानव खोपड़ी का सूप, जिनकी हत्या की उनकी सजा रखी थी 14 खोपडिय़ां

Satyakatha

जुर्म की दुनिया में कई ऐसे नाम सामने आते हैं, जो अपने वहशीपन के लिए जाने जाते हैं। वो दरिंदगी की सारी हदों को पार कर कुछ इस तरह से वारदातों को अंजाम देते हैं कि जो भी देखे-सुने उसका दिल खौफ से भर जाए। उसका दिमाग दहशत के अंधेरे में गुम हो जाए। ऐसे लोगों की वहशी करतूतें किसी शैतान से कम नहीं होती। ऐसा ही एक नाम है राजा कोलंदर का।

राजा कोलंदर का नाम सबसे पहले 1998 में धूमनगंज में हुई एक युवक की हत्या में सामने आया। वहां से शुरू हुआ यह अपराध का सिलसिला 2000 तक आते-आते सीरियल किलिंग में बदल गया। इसके बाद राजा कोलंदर ने प्रयागराज, रीवा, रायबरेली और लखनऊ समेत कई जगहों पर हत्याएं कीं।

राजा कोलंदर की कहानी न केवल एक अपराध कथा है, बल्कि यह हमारे समाज के भीतर छिपी उन बीमारियों की भी पड़ताल करती है, जो व्यक्ति को इंसान से दरिंदा बना देती हैं। उसकी सजा से जहां न्यायपालिका की दृढ़ता सामने आई है, वहीं समाज को भी एक गहरी सीख मिली है कि हिंसा, सनक और पागलपन का कोई स्थान सभ्य समाज में नहीं है।



राजा कोलंदर सिर्फ एक नाम नहीं था, बल्कि हैवानियत और आतंक का दूसरा नाम है, जिसने पूरी मानवता को झकझोर कर दिया था। 25 साल बाद उस नरभक्षी को उम्रकैद की सजा मिली है।

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लखनऊ की एडीजे कोर्ट ने करीब 25 साल पहले एक के बाद एक हत्याओं से उत्तर प्रदेश को दहला देने वाले सीरियल किलर राजा कोलंदर को आजीवन कारवास की सजा सुना दी है। राजा कोलंदर  को 23 मई को सजा सुनाई गई है। इंसानों की हत्या करने के बाद उनके भेजा का सूप पीने और फिर खोपडिय़ों को खजाने की तरह जमा करने वाला राजा कोलंदर अब ताउम्र जेल में रहेगा। राजा कोलंदर के साथ ही उसके साले बच्छराज कोल को भी उम्र कैद की सजा सुनाई गई है। दोनों को यह सजा साल 2000 में पत्रकार मनोज कुमार सिंह और उनके ड्राइवर रवि श्रीवास्तव के अपहरण और हत्या के मामले में सुनाई गई है। इससे पहले राजा कोलंदर को पत्रकार धीरेंद्र सिंह की हत्या के मामले में भी उम्रकैद सुनाई जा चुकी है। राजा कोलंदर कौन है, उसका असली नाम क्या है और कैसे वह एक साधारण से सरकारी कर्मचारी से खूंखार सीरियल किलर बन गया।
1980-90 के दौर में प्रयागराज की नैनी के केंद्रीय आयुध भंडार (सीओडी) छिवकी में एक कर्मचारी था, जिसका नाम राम निरंजन कोल था। शंकरगढ़ का रहने वाला राम निरंजन ही अपने कारनामों के कारण राजा कोलंदर बन गया। दरअसल सरकारी कर्मचारी होने के बावजूद राम निरंजन को ज्यादा पैसा कमाने की चाह थी, जिसके लिए वह ब्याज पर रुपये देने का काम करने लगा था। इसी दौरान वह जुर्म की दुनिया से भी जुड़ गया था।


साल 1998 में पहली बार राम निरंजन का नाम मर्डर के साथ जुड़ा था। धूमनगंज थाना इलाके के मुंडेरा मोहल्ले में टीवी-वीसीआर किराये पर देने वाले युवक के मर्डर में उसका नाम आया तो वह फरार हो गया था। बताते है कि उस समय वीसीआर पर ब्लु फिल्म देखने का चलन था जो वीसीआर किराये पर देने वाले अपने परचितों को उपलब्ध कराते थे। घटना के रोज राजा कोलंदर ने भी युवक से ऐसी ही फिल्म की वीडियो कैसेट की मांग की जिस पर युवक ने ऐसी फिल्म होने से मना कर दिया। इसी बात पर राजा कोलंदर ने उसकी हत्या कर दी।


राम निरंजन का नाम इसके बाद एक के बाद एक कई मर्डर में सामने आया, जिससे पूरे इलाके में उसकी दहशत हो गई। साथ ही लोग उसके नाम का रौब मानने लगे। जरायम की दुनिया में राम निरंजन कोल का नाम बड़ा होता जा रहा था। वह आदिवासी कोल समाज से आता है। लिहाजा, उसका रौब और दहशत देखकर उसकी जाति-बिरादरी के लोग उसे कोल जाति का राजा मानने लगे। तभी उसका नाम राम निरंजन कोल की बजाय राजा कोलंदर हो गया। पुलिस की फाइल हो या आम लोग, सभी उसे राजा कोलंदर के नाम से जानने लगे थे। धीरे-धीरे उसका यही नाम जुर्म की दुनिया में भी आम हो गया। कम ही लोग उसके असली नाम से वाकिफ थे।  पुलिस फाइल में भी उसके खिलाफ दर्ज मुकदमों में यही नाम लिखा जाने लगा।


पुलिस रिकॉर्ड में राजा कोलंदर को सनकी सीरियल किलर बताया गया। पुलिस ने जब उसे एक केस में पुलिस ने रिमांड पर लिया तो उसने खुद बताया कि वह जिसकी भी हत्या करता था, उसका सिर काटकर अपने पास रख लेता था। यह सिर लेकर वह पिपरी स्थित अपने फॉर्महाउस पर आता था, जहां सिर को खौलते पानी में उबालता था और उसके भेजे का सूप बनाकर पीता था।
पिपरी के फॉर्महाउस को राजा कोलंदर ने सुअर पालन के लिए बनाया था, लेकिन जब पुलिस ने उसे साथ ले जाकर वहां छापा मारा तो जमीन में दबाई गई 14 खोपड़ी (नरमुंड) बरामद हुए थे। इन सभी नरमुंड पर मार्कर से उन लोगों के नाम भी लिखे हुए थे, जिनकी वे खोपडिय़ां थीं। इसके अलावा दो लाश भी जमीन में दफन की हुई बरामद की गई थी।


पुुलिस के मुताबिक, राजा कोलंदर इतना सनकी था कि यदि कोई आदमी उसे पसंद ना आए तो उसकी हत्या कर देता था। ऑर्डिनेंस फैक्ट्री के एक कर्मचारी की हत्या उसने महज कायस्थ होने के कारण कर दी थी। उसने पुलिस को बताया कि कायस्थ लोगों का दिमाग बेहद तेज होता है। इस कारण उसे उस आदमी से डर लगता था,


राज कोलंदर की हैवानियत का राज 14 दिसंबर, 2000 को पत्रकार धीरेंद्र सिंह के गायब होने से खुला था। धीरेंद्र का शव 18 दिसंबर को यूपी-एमपी बॉर्डर पर रीवा में बिना सिर के मिला था। इलाहाबाद के शंकरगढ़ कस्बे में रहने वाले पत्रकार धीरेंद्र सिंह दैनिक समाचार पत्र आज में काम करते थे। उन्होंने अपने काम से अपनी अलग पहचान बनाई थी। उस दिन भी वो अपने काम पर जाने के लिए घर से निकले थे, लेकिन फिर कभी लौटकर वापस नहीं आए। उनके परिजनों ने उन्हें सभी जगह तलाश किया। उनके बारे में पड़ोस से लेकर दफ्तर तक और दोस्तों से लेकर रिश्तेदारों तक पूछताछ की, लेकिन धीरेंद्र का कुछ पता नहीं चला। मामला पुलिस तक जा पहुंचा। पुलिस ने बिना देर किए थाना कीडगंज में पत्रकार की गुमशुदगी दर्ज कर ली और धीरेंद्र की तलाश शुरु कर दी। लेकिन पुलिस को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि ये तलाश लंबी होने वाली है।

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इस दौरान पुलिस ने जब परिवार से पूछा कि क्या धीरेंद्र की किसी से कोई रंजिश या दुश्मनी थी? तो परिजनों ने सीधे तो किसी पर आरोप नहीं लगाया। मगर इस बीच धीरेंद्र के घरवालों ने पुरानी रंजिश के चलते राम निरंजन कोल नाम के एक शख्स पर शक होने की बात कही। पत्रकार धीरेंद्र को गुमशुदा हुए करीब 8 दिन बीत चुके थे। उनके परिवार वाले पुलिस के सामने किसी अनहोनी की आशंका पहले ही जता चुके थे। अब राजा कोलंदर पुलिस की गिरफ्त में था। पुलिस ने उससे पूछताछ शुरू की। पहले वह पुलिस को बरगलाता रहा। लेकिन बाद में उसने पुलिस के सामने जो कहानी बयां की उसे सुनकर पुलिसवाले भी खौफजदा हो गए। हकीकत ये थी कि 14 दिसम्बर 2000 को ही पत्रकार धीरेंद्र सिंह का कत्ल हो चुका था।


राजा कोलंदर से पूछताछ के दौरान पुलिस के सामने वो राज खुलने जा रहा था, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। राम निरंजन कोल उर्फ राजा कोलंदर के बयान दर्ज किए जा रहे थे। वो बोलता जा रहा था, पुलिसवाले खामोशी से सुनते जा रहे थे। इस कत्ल की पटकथा 1998 में ही लिखी गई थी। जब एक मामले में पत्रकार धीरेंद्र सिंह के भाई ने राजा कोलंदर को नामजद करते हुए एफआईआर दर्ज कराई थी। तभी से राजा कोलंदर धीरेंद्र सिंह के परिवार से दुश्मनी रखने लगा था। उसे पता था कि पत्रकार होने के नाते धीरेंद्र की पुलिस में खासी इज्जत थी। उसके खिलाफ दर्ज हुए मामले में भी उसका हाथ था। इस वजह से भी वो धीरेंद्र को अपना दुश्मन मानता था।


 राजा कोलंदर ने पुलिस को बताया कि वारदात के दिन उसने पत्रकार धीरेंद्र सिंह को विश्वास में लेकर अपने पिपरी फार्म हाउस पर बुलाया था। जब धीरेंद्र सिंह वहां पहुंचे तो दिन ढल चुका था। सर्दियों का मौसम था। जब धीरेंद्र सिंह अपनी मोटरसाइकिल से वहां पहुंचे तो राजा कोलंदर और उसका साला वक्षराज वहां अलाव जलाकर  बैठे थे। उन दोनों ने धीरेंद्र सिंह को भी आग के सामने बैठ जाने को कहा। जब धीरेंद्र भी अलाव के पास बैठ गए तभी उनकी पीठ पर वक्षराज ने गोली मार दी। मौके पर ही धीरेंद्र सिंह ने दम तोड़ दिया।


राजा कोलंदर और उसका साला वक्षराज लाश को ठिकाने लगाने की तैयारी पहले ही कर चुके थे। उन दोनों ने धीरेंद्र की लाश को टाटा सूमों कार में डाला और मध्य प्रदेश की सीमा में दाखिल हो गए। जहां उन दोनों ने पहले धीरेंद्र का सिर और लिंग उसके जिस्म से काटकर अलग किया। फिर लिंग और धड़ को वहीं खेत में दफना दिया। जबकि उसका सिर एक पन्नी में लपेटकर रीवा के बाणसागर तालाब में फेंक दिया। उसके कपड़े उन्होंने एक झाड़ी में फेंक दिए थे। इसके बाद दोनों वहां से निकलकर वापस फार्म हाउस पर आ गए।


राजा कोलंदर ने पुलिस को बताया कि उसने पत्रकार धीरेंद्र सिंह की लाश को ठिकाने लगाने के बाद उनकी मोटरसाइकिल बनारस में रहने वाले अपने समधी दशरथलाल को दी थी। जबकि धीरेंद्र के जूते वक्षराज ने रख लिए थे। जबकि धीरेंद्र का मोबाइल फोन, जो खुद राजा कोलंदर ने अपने पास रख लिया था। ।  


इस मामले में पुलिस जब जांच के दौरान राजा कोलंदर की पत्नी और जिला पंचायत सदस्य फूलन देवी के घर पहुंची तो वहां से धीरेंद्र सिंह का सामान बरामद हो गया। इसी तलाशी के दौरान पुलिस के हाथ वो डायरी भी लगी, जो आगे पुलिस के लिए एक बड़ा राजफाश करने वाली थी। पुलिस के अधिकारियों ने जब राजा कोलंदर की उस डायरी के पन्ने पलटने शुरू किए तो उनके होश फाख्ता हो गए। उस डायरी में कत्ल और दरिंदगी की ऐसी दास्तान लिखी थी कि हर कोई सुनकर हैरान परेशान था। कोई यकीन नहीं कर पा रहा था कि जिसे लोग आम मुजरिम समझते थे, वो असल में एक वहशी आदमखोर दरिंदा है।


धीरेंद्र सिंह हत्याकांड की जांच में जुटी थाना कीडगंज पुलिस को डायरी से एक नहीं दो नहीं बल्कि कई लोगों के कत्ल की कहानी मिली, जो साबित कर रही थी कि राजा कोलंदर कितना बड़ा आदमखोर और खूनी है। पुलिस ने जांच का दायरा बढ़ा दिया था। अब ये मामला केवल एक पत्रकार के कत्ल का नहीं रह गया था, बल्कि पुलिस के सामने एक सीरियल किलर था, जो लोगों का खून करके उनके जिस्म के टुकड़े-टुकड़े कर देता था। फिर मरने वाले की खोपड़ी से भेजा या जिस्म से दूसरे अंग निकाल कर उसे उबालता था और सूप बनाकर पी जाता था। उसका मानना था कि इस सूप से उसका दिमाग तेज होगा और उसे अपार शक्ति मिलेगी।


सच सामने आने लगा तो पुलिस के हाथ पाव भी फूलने लगे। पुलिस ने राजा कोलंदर की निशानदेही पर अशोक कुमार, मुइन, संतोष और कालीप्रसाद के नरमुंड बरामद किए तो डायरी में लिखी सारी कहानी सच हो गई। पूछताछ में पता चला कि आदमखोर राजा कोलंदर ने कुल मिलाकर 14 लोगों का कत्ल किया। वह जरा-जरा सी बात पर लोगों का खून कर देता था। लाश को अलग-अलग टुकड़ों में बांटकर जंगल या दूर दराज के सुनसान इलाकों में फेंक दिया करता था। पुलिस उन सभी मामलों की तहकीकात करती रही।


धीरेंद्र की खोपड़ी का राज भी उस समय खुला, जब पुलिस ने साल 2000 में पत्रकार मनोज सिंह और उनके ड्राइवर रवि श्रीवास्तव की हत्या की जांच शुरू की।
सीरियल किलर राजा कोलंदर उर्फ राम निरंजन को 23 मई को मनोज और रवि की हत्या के मामले उम्रकैद की सजा सुना दी गई। लखनऊ से किराए पर टाटा सूमो बुक कराकर चालक तथा गाड़ी मालिक के बेटे की हत्या कर टाटा सूमो लूटने के मामले में राजा कोलंदर और शंकरगढ़ थाने के वेरी बसहरा निवासी उसके साले बच्छराज कोल को आयुर्वेद घोटाला प्रकरण के विशेष न्यायाधीश रोहित सिंह ने आजीवन कारावास तथा ढाई-ढाई लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। जुर्माने की 40 फीसदी धनराशि मृतकों के परिजनों को बतौर प्रतिकर दी जाएगी। शेष धनराशि राज्य सरकार को उचित व्यय चुकाने के लिए दी जाएगी।


अभियोजन की ओर से अपर जिला शासकीय अधिवक्ता एमके सिंह एवं सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता कमलेश कुमार सिंह ने बताया कि इस दोहरे हत्याकांड की रिपोर्ट शिवहर्ष सिंह ने 26 जनवरी 2000 को नाका थाने में दर्ज कराई थी। रिपोर्ट के मुताबिक शिवहर्ष सिंह की टाटा सूमो लखनऊ से इलाहाबाद के बीच चलती थी। 23 जनवरी को उनका बेटा मनोज कुमार सिंह तथा चालक रवि श्रीवास्तव उर्फ गुड्डू कानपुर रोड से 6 सवारियों को लेकर चाकघाट रींवा मध्य प्रदेश के लिए गए थे।


ये लोग रास्ते में हरचंदपुर में शिवहर्ष के ढाबा रुके और खाना खाया। वहां पर शिवहर्ष एवं उसके भाई शिव शंकर ने सवारियों को अच्छी तरह से पहचाना था। जब उसकी टाटा सूमो गाड़ी वापस नहीं आई तो उन्हें किसी अनहोनी की आशंका हुई। अदालत को बताया गया कि जब पुलिस गाड़ी की तलाश कर रही थी तो सूचना मिली कि ग्राम गढ़वा के वन विभाग की जमीन पर गिट्टी के चट्टे के पास दो लाशें पड़ी हुई हैं। सूचना पर शिवहर्ष और उनके परिवार के लोग पहुंचे और पहचान की। पुलिस के मुताबिक, मनोज सिंह की हत्या में राजा कोलंदर का नाम तब खुला जब राजा कोलंदर ने प्रयागराज में एक पत्रकार धीरेंद्र सिंह की हत्या कर दी थी।

जब पुलिस ने पत्रकार की हत्या के मामले की जांच शुरू की तो राजा कोलंदर के फॉर्म हाउस में कई लोगों के कटे हुए सिर मिले।
यहां से मनोज सिंह का कोट मिला, जिस पर रायबरेली के टेलर का नाम लिखा था। इसके अलावा, मनोज सिंह से लूटी हुई टाटा सूमो भी फॉर्म हाउस से मिली। उस पर फूलन देवी का नाम लिखा था। पुलिस ने जब कोट और टाटा सूमो की जांच की तो कडिय़ां जुड़ती हुई मनोज सिंह तक पहुंची। इसके बाद मनोज सिंह और रवि श्रीवास्तव की हत्या में राजा कोलंदर का नाम सामने आया।
जांच और पूछताछ के दौरान पता चला कि मनोज और रवि टाटा सूमो की सर्विस करवाने लखनऊ आए थे। जब वो वापस लौट रहे थे तो चारबाग के पास राजा कोलंदर, उसकी पत्नी फूलन देवी और साले वक्षराज ने गाड़ी रुकवाई। राजा कोलंदर ने मनोज से कहा कि उसकी पत्नी की तबीयत खराब है। गाड़ी से प्रयागराज  छोड़ दीजिए।


राजा कोलंदर ने 1500 रुपए में टाटा सूमो बुक की। इसके बाद सब लोग इलाहाबाद के लिए चले गए। मनोज रायबरेली में हरचंदपुर में रुके। क्योंकि, जनवरी की ठंड थी। ऐसे में मनोज ने कोट और कुछ ऊनी कपड़े रखे। फिर प्रयागराज के लिए रवाना हो गए थे। कई दिन तक दोनों वापस नहीं लौटे तो परिवार ने तलाश शुरू की। बाद में उनके क्षत-विपत शव प्रयागराज के बॉर्डर पर शंकरगढ़ के जंगल में मिले थे।


 पुलिस विवेचना के दौरान अभियुक्त राजा कोलंदर उर्फ और राम निरंजन, फूलन देवी एवं उसके नाबालिग बेटे बच्छराज कोल, दिलीप गुप्ता एवं दद्दन सिंह का नाम आया था। इसमें से दिलीप गुप्ता की गिरफ्तारी नहीं हो पाई थी। अदालत को यह भी बताया गया कि सबसे पहले आरोपित राजा कोलंदर व बच्छराज को गिरफ्तार किया गया तथा उन्हें इलाहाबाद के कीडगंज लाया गया तो उन्हें शिवहर्ष व उनके परिवार ने पहचाना। राजा कोलंदर के घर से पुलिस ने मृतक मनोज कुमार सिंह का कोट बरामद किया था। अदालत को बताया गया कि सबसे पहले फूलन देवी एवं उसके नाबालिग बेटे के खिलाफ मुकदमा चला। बेटे का मामला जुवेनाइल कोर्ट भेज दिया गया तथा फूलन देवी को अदालत ने 8 जुलाई 2013 को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। इस मामले में मुकदमे की विचरण के दौरान आरोपी दद्दन सिंह की मृत्यु हो गई।


लोगों का कहना है कि कोलंदर को जीवन की आखिरी सांस तक की सजा सुनाए जाने से इस इलाके से दहशत के एक काले अध्याय का अंत हो गया है।
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धीरेंद्र सिंह हत्याकांड को रेयरेस्ट ऑफ दी रेयर माना
इलाहाबाद कोर्ट ने 1 दिसंबर 2012 को रामनिरंजन उर्फ राजा कोलंदर को उम्रकैद की सजा सुनाई। कोर्ट ने उसे पत्रकार धीरेंद्र सिंह समेत कई लोगों की हत्या का दोषी करार देते हुए इसे रेयरेस्ट ऑफ दी रेयर केस माना था। उसके खिलाफ यह केस करीब 12 साल तक चला। तब से कोलंदर उन्नाव जेल में बंद है। पत्रकार धीरेंद्र की हत्या के आरोप में राजा कोलंदर को जब 2012 में सजा सुनाई गई थी तो वह हंस पड़ा। सजा सुनने के बाद मुस्कुराते हुए कहा था कि दस हजार रुपये होते ही क्या हैं, इसे जमा कर देंगे। मगर फिर तुरंत कहा कि उम्रकैद की सजा जेल में रहते हुए जान गया हूं, कैसी होती है। राजा कोलंदर जरा भी डरा नहीं। न सहमा। बल्कि बेबाकी से बोला था कि वह इस फैसले के खिलाफ अपील करेगा।

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 कायस्थ साथी की खोपड़ी को भूनकर खाया
इस नरपिशाच की हैवानियत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उसने आर्डिनेंस फैक्ट्री के साथी कर्मचारी काली प्रसाद श्रीवास्तव को इसलिए मौत के घाट उतारा था, क्योंकि वह कायस्थ बिरादरी का था। उसका मानना था कि कायस्थ लोगों का दिमाग काफी तेजी से काम करता है। वह कई दिनों तक उसकी खोपड़ी के हिस्से को भूनकर खाता रहा। उसके दिमाग को उबालकर सूप बनाकर पीता था।
प्रयागराज पुलिस ने जब कोल के फॉर्म हाउस में छापा मारा तो वहां काली प्रसाद श्रीवास्तव का नरमुंड भी बरामद होने की बात सामने आई थी।
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 बेटे का नाम अदालत और जमानत, बेटी का आंदोलन तथा पत्नी का  फूलन
राजा कोलंदर का असली नाम राम निरंजन कोल है। वह प्रयागराज के शंकरगढ़ का मूल निवासी है। नैनी स्थित केंद्रीय आयुध भंडार छिवकी में कर्मी था। कर्मचारी होने के बावजूद वह खुद को राजा ही समझता था। उसका कहना था कि जो आदमी उसे पसंद नहीं उसे वह अपनी अदालत में सजा जरूर देता है। अजीब सोच के कारण कोलंदर ने अपनी पत्नी का नाम फूलन देवी और दोनों बेटों के नाम अदालत और जमानत रखे थे। वहीं, बेटी का नाम आंदोलन रखा था। उसकी पत्नी फूलन देवी जिला पंचायत सदस्य चुनी गई थी।
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कैसे खुला था राजा कोलंदर की हैवानियत का राज
राज कोलंदर की हैवानियत का राज 14 दिसंबर, 2000 को पत्रकार धीरेंद्र सिंह के गायब होने से खुला था। धीरेंद्र का शव 18 दिसंबर को यूपी-एमपी बॉर्डर पर रीवा में बिना सिर के मिला था। जांच के दौरान 14 दिसंबर को धीरेंद्र की बाइक पर राजा कोलंदर के दिखने की जानकारी सामने आई। पुलिस ने थाने बुलाकर पूछताछ की तो सख्ती के बाद राजा कोलंदर ने हत्या स्वीकार कर ली। हालांकि राजा कोलंदर के राजनीतिक आकाओं ने उसे जेल भिजवाकर मामला रफा-दफा करा दिया। धीरेंद्र की खोपड़ी नहीं मिलने से यह मामला दब गया।

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13 साल बाद शुरू हुई सुनवाई, 12 साल लगे फैसला आने में
पुलिस ने मनोज और रवि की हत्या के केस में 21 मार्च, 2000 को चार्जशीट दाखिल कर दी थी, लेकिन कानूनी पेचीदगियों में यह केस करीब 13 साल तक फंसा रहा और ट्रायल शुरू नहीं हो सका। मई, 2013 में इस केस का ट्रायल शुरू हुआ, जिसके बाद फैसला आने में करीब 12 साल लग गए। आखिरकार 23 मई को लखनऊ कोर्ट के एडीजे रोहित सिंह ने राजा कोलंदर और बच्छराज कोल को उम्रकैद की सजा सुनाई है।
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मुझे कोलंदर नहीं राजा कोलंदर बोलो
दिसंबर 2000 में पत्रकार धीरेंद्र सिंह की हत्या के आरोप में पकड़े गए राजा कोलंदर और उसके साले से कीडगंज थाने में पूछताछ चल रही थी। राजा कोलंदर को थाने में एक बेंच पर बैठाया गया था। एक पुलिस वाला उससे कुछ पूछ कर अपने रजिस्टर में दर्ज कर रहा था। एक पुलिस वाले ने उसे कोलंद कह कर संबोधित किया तो वह नाराज हो गया। और बोला कि ऐ सुनो कोलंदर नहीं बल्कि राजा कोलंदर बोलो। इस दौरान एक पत्रकार ने उससे कुछ पूछा तो कोलंदर बोला, ऐसा छापो कि पूरा लखनऊ हिल जाए। उस समय एक अन्य संवाददाता से उसने कहा था क्या मेरी फोटो छपेगी, क्या मेरी फोटो टीवी पर दिखाई जाएगी। मेरे जैसे लोग ही एमपी एमएलए बनते हैं, अब मैं भी एमपी बनू..

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