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चना गले में फंसा, इलाज के इंतज़ार में मासूम ने तोड़ा दम; परिजनों ने डॉक्टरों पर लापरवाही का लगाया आरोप
Korba, CG

जिले में गुरुवार को एक दर्दनाक हादसे में 2 साल के मासूम की जान चली गई। घर में खेलते समय उसके गले में चना फंस गया, जिसके बाद उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी।
परिवार वालों ने उसे फौरन जिला मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचाया, लेकिन परिजनों का आरोप है कि इलाज में देरी और लापरवाही के चलते उसकी मौत हो गई।
मासूम की पहचान दिव्यांश कुमार के रूप में हुई है, जो उत्तर प्रदेश मूल के एक परिवार का सदस्य था और कोरबा में पिता छोटू कुमार पानीपुरी बेचने का कार्य करते हैं। दिव्यांश गुरुवार सुबह घर के आंगन में खेलते हुए कमरे में गया, जहां उसने ज़मीन पर पड़े चने को निगल लिया। तभी से उसकी हालत बिगड़ने लगी।
इलाज का इंतज़ार करता रहा परिवार, डॉक्टर कहते रहे- ‘बड़े साहब देखेंगे’
बच्चे को अस्पताल ले जाने वाले उसके चाचा गोलू बंसल ने आरोप लगाया कि सुबह 8 बजे के आसपास वे दिव्यांश को लेकर अस्पताल पहुंचे। वहां डॉक्टरों से बार-बार आग्रह करने के बावजूद उन्हें सिर्फ यह जवाब मिलता रहा कि "बड़े साहब आकर देखेंगे।" परिजनों ने इलाज के लिए जरूरी ट्यूब भी खुद जाकर मंगवाई, लेकिन समय पर कोई ऑपरेशन नहीं किया गया।
शाम 7:30 बजे दिव्यांश ने दम तोड़ दिया। परिवार का कहना है कि अगर समय रहते चना गले से निकाल लिया जाता, तो मासूम की जान बच सकती थी।
डॉक्टरों का पक्ष: बच्चा अस्पताल पहुंचने तक था बेहद गंभीर
मामले में शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. हरबंश ने बताया कि जब दिव्यांश को अस्पताल लाया गया, तब तक उसकी नाड़ी धीमी पड़ चुकी थी। उसे वेंटिलेटर पर रखा गया और श्वसन मार्ग में ट्यूब डाली गई। लगभग 4-5 घंटे तक बच्चे को चिकित्सकीय निगरानी में रखा गया। डॉक्टरों की टीम ने पूरी कोशिश की, लेकिन चना फेफड़ों में फंस चुका था, जिससे स्थिति और भी जटिल हो गई।
रेफर की जरूरत थी, लेकिन वेंटिलेटर न होने से यहीं करना पड़ा इलाज
डॉ. हरबंश ने यह भी स्वीकार किया कि बच्चे को बिलासपुर रेफर करना ज्यादा उचित होता, लेकिन 108 एंबुलेंस में वेंटिलेटर की सुविधा न होने के कारण जोखिम उठाकर कोरबा में ही सर्जरी की तैयारी की गई। मेडिकल कॉलेज में ENT विशेषज्ञ की संख्या सीमित है, जबकि ऐसे मामलों में कम से कम 2 से 3 विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है।
ऑपरेशन से पहले ही थम गई मासूम की सांस
डॉक्टरों के अनुसार, ऑपरेशन शुरू होने से पहले ही दिव्यांश की स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि वह बच नहीं सका। उन्होंने इलाज में किसी भी तरह की लापरवाही से इनकार किया है और कहा कि परिजनों का इक्विपमेंट मंगवाने का आरोप भी निराधार है। बच्चे का शव परिजनों को सौंप दिया गया है, जो उसे अपने मूल गांव ले गए हैं। इस संबंध में पुलिस थाने में कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं की गई है।