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खिवनी पहुंचे मंत्री शाह, ट्रॉली में लौटे: आदिवासियों के घर तोड़ने पर सीएम ने DFO हटाया, शिवराज की शिकायत के बाद सख्त कार्रवाई
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देवास जिले के खिवनी गांव में आदिवासी परिवारों के घरों पर हुई बुलडोजर कार्रवाई ने राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में हलचल मचा दी है। घटना के बाद केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान के हस्तक्षेप पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सीहोर के डीएफओ मगन सिंह डाबर को हटाने का निर्णय लिया। अब उनकी जगह अर्चना पटेल को सीहोर का नया डीएफओ नियुक्त किया गया है।
23 जून को तोड़े गए थे 50 से अधिक आदिवासी घर
23 जून को वन विभाग ने खिवनी अभयारण्य क्षेत्र में 50 से ज्यादा आदिवासी कच्चे घरों को अतिक्रमण बताकर गिरा दिया था। इस कार्रवाई के विरोध में पीड़ितों ने शिवराज सिंह चौहान से भेंट की थी। रविवार को शिवराज पीड़ित आदिवासी परिवारों को साथ लेकर सीएम हाउस पहुंचे और मुख्यमंत्री से मुलाकात की।
CM बोले- हमारी सरकार गरीबों के साथ है
सीएम मोहन यादव ने आदिवासियों की बात सुनते हुए अधिकारियों को जांच और दोषियों पर कार्रवाई के निर्देश दिए। उन्होंने X (पूर्व ट्विटर) पर लिखा, "हमारी सरकार गरीबों की है, गरीबों के साथ है। ऐसी संवेदनशील कार्रवाई में सावधानी बरतनी चाहिए।"
मंत्री शाह पैदल पहुंचे गांव, ट्रॉली में लौटे
मुख्यमंत्री के निर्देश पर जनजातीय कार्य मंत्री डॉ. विजय शाह ने खिवनी गांव का दौरा किया। कीचड़ और दलदल भरे रास्तों के कारण उन्होंने करीब 3-4 किलोमीटर तक पैदल चलकर गांव में पीड़ितों से मुलाकात की। लौटते समय वे ट्रैक्टर ट्रॉली में बैठकर बाहर निकले। इस दौरान सीएम के अवर सचिव लक्ष्मण सिंह मरकाम, विधायक आशीष शर्मा व अन्य अधिकारी भी साथ थे।
बारिश के मौसम में घर तोड़ने पर उठे सवाल
विपक्ष ने इस घटना पर सरकार को घेरा। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा कि मानसून के दौरान किसी भी मकान को गिराना नियमविरुद्ध है। उन्होंने सवाल किया कि क्या शिवराज सिंह चौहान अब भी आदिवासियों के मुद्दे पर चुप रहेंगे?
"अभयारण्य नहीं, आदिवासी संस्कृति पर हमला" - अलावा
जयस के संरक्षक डॉ. हीरालाल अलावा ने आरोप लगाया कि सरकार "संरक्षण" के नाम पर आदिवासियों को पैतृक जमीन से बेदखल कर रही है। उन्होंने कहा कि खिवनी अभयारण्य सिर्फ जंगल नहीं, बल्कि वहां बसे आदिवासियों की संस्कृति, पहचान और आजीविका का स्रोत है।
सरकार के सामने चुनौती: विकास और अधिकार में संतुलन
यह घटना आदिवासी अधिकारों और वन नीति के बीच बढ़ते तनाव को उजागर करती है। अब देखना होगा कि सरकार पीड़ित परिवारों को किस हद तक राहत देती है और आगे ऐसी घटनाएं रोकने के लिए क्या ठोस कदम उठाती है।