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अवैध निर्माण पर उपयंत्री देवेश गढ़वाल की ढीली पकड़, रहवासी बोले– ये मिलीभगत नहीं तो क्या है?
BHOPAL, MP

राजधानी भोपाल में नगर निगम की निष्क्रियता और अधिकारियों की मिलीभगत का एक और खुला उदाहरण सामने आया है।
शहर की प्रमुख कॉलोनी ओल्ड अशोका गार्डन में अवैध निर्माण कार्य खुलेआम नियमों को ताक पर रखकर चल रहे हैं। स्थानीय रहवासियों द्वारा लगातार शिकायतों के बावजूद नगर निगम के जिम्मेदार उपयंत्री देवेश गढ़वाल ने न तो समय पर कार्रवाई की और न ही निर्माण रुकवाने में कोई तत्परता दिखाई। उलटे, इनका रवैया शिकायतकर्ताओं के प्रति उदासीन और निर्माणकर्ताओं के प्रति नरमी भरा नजर आ रहा है।
मामला ओल्ड अशोका गार्डन, वार्ड-69
स्थान: भूखंड क्रमांक 193, ओल्ड अशोका गार्डन
भूमि स्वामी: अनिल कुमार जैन
जांच अधिकारी: उपयंत्री देवेश गढ़वाल
यहां अनिल कुमार जैन द्वारा निजी बंगले का निर्माण नगर निगम के नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए किया जा रहा है। इलाके के रहवासी कई बार इस मामले में आपत्ति जता चुके हैं।
दिनांक 8 अप्रैल 2025 को रहवासियों ने नगर निगम की बिल्डिंग परमिशन शाखा में लिखित शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद उपयंत्री देवेश गढ़वाल को जांच सौंपी गई।
देवेश गढ़वाल ने 11 अप्रैल को पहला नोटिस जारी किया और चेतावनी दी कि निर्माण रोका जाए, लेकिन निर्माण कार्य जारी रहा। इसके बाद 24 अप्रैल को दूसरा नोटिस जारी किया गया, जिसमें लिखा था कि निर्माण कार्य स्वयं हटा लें, अन्यथा तोड़फोड़ की कार्रवाई की जाएगी।
जवाब में जैन ने केवल सड़क किनारे निकले छज्जे हटाकर दिखावटी कार्रवाई की, जबकि पूरा निर्माण यथावत जारी रहा। जब शिकायतकर्ता बार-बार संपर्क करते रहे, तो उपयंत्री देवेश गढ़वाल ने पहले शादी समारोह में व्यस्तता का हवाला दिया और बाद में कहा कि भूमि स्वामी ने कंपाउंडिंग के लिए आवेदन दिया है।
प्रश्न यह उठता है कि —
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क्या कंपाउंडिंग के नाम पर निर्माण जारी रखना वैध है?
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क्या नियम तोड़ने वाले रसूखदारों के लिए नगर निगम के नियम लचीले हैं?
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उपयंत्री की निष्क्रियता क्या किसी गुप्त लेन-देन की ओर इशारा नहीं करती?
स्थानीय रहवासियों की नाराज़गी
इन मामलों में एक तस्वीर उभरती है—शिकायत, नोटिस, फिर खामोशी और निर्माण जारी। इससे आक्रोशित होकर स्थानीय लोग अब मामले को लेकर कमिश्नर के पास शिकायत करने की तैयारी में है। उनका कहना है कि यदि अभी कार्रवाई नहीं हुई, तो ये अवैध निर्माण भविष्य में पूरी कॉलोनी की संरचनात्मक सुरक्षा और मूलभूत सुविधाओं पर खतरा बन सकते हैं।
आयुक्त से करेंगे शिकायत, नहीं बानी बात तो जायेंगे कोर्ट : रहवासी
बड़े सवाल, जिनका जवाब नगर निगम को देना होगा:
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जब शिकायत लिखित में दर्ज हुई थी, तो निर्माण कैसे जारी रहा?
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क्या एक नहीं, दो-दो नोटिस भी रसूखदारों पर बेअसर हैं?
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क्या निगम का 'शहरी नियंत्रण' अब 'शहरी नियंत्रणहीनता' में बदल गया है?
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और सबसे अहम – क्या इस मामले की निष्पक्ष जांच होगी?
अफसरों की चुप्पी, नियमों की हत्या
इन प्रकरण ने नगर निगम की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। यदि नगर निगम इस तरह रसूख के सामने झुकता रहा, तो यह शहर योजनाबद्ध विकास की जगह अराजक निर्माण संस्कृति का गढ़ बन जाएगा। अब देखना यह है कि आयुक्त स्तर पर कोई सख्त कार्रवाई होती है या नहीं।
अगली कड़ी: एक और उपयंत्री, एक और कहानी
यह तो केवल एक भूखंड की कहानी है। आने वाले दिनों में हम उजागर करेंगे कि कैसे एक अन्य उपयंत्री ने नियमों से समझौता कर शहर के बीचोंबीच अवैध निर्माण को खुली छूट दे दी। भ्रष्टाचार और मिलीभगत की इन कहानियों को सामने लाना अब ज़रूरी हो गया है।
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