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जस्टिस बी. आर. गवई बने देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश, इन 10 ऐतिहासिक फैसलों के लिए हैं जाने जाते
Jagran Desk

देश की सर्वोच्च अदालत को आज नया नेतृत्व मिला है। जस्टिस बी. आर. गवई ने सोमवार को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में पदभार संभाला। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें दिल्ली में आयोजित एक औपचारिक समारोह में पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।
दलित समुदाय से दूसरे CJI, बौद्ध धर्म के पहले अनुयायी
जस्टिस गवई भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में दलित समुदाय से आने वाले दूसरे मुख्य न्यायाधीश हैं। उनसे पहले के. जी. बालाकृष्णन 2007 में इस पद पर पहुंचे थे। विशेष बात यह है कि जस्टिस गवई पहले ऐसे CJI हैं जो बौद्ध धर्म का पालन करते हैं। उनके पिता आर. एस. गवई भी एक प्रतिष्ठित अंबेडकरवादी नेता रहे हैं, जिन्होंने 1956 में डॉ. भीमराव अंबेडकर के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था।
न्यायिक यात्रा और पारिवारिक पृष्ठभूमि
24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में जन्मे बी. आर. गवई ने बीकॉम के बाद कानून की पढ़ाई की। दिलचस्प बात यह है कि वे मूल रूप से आर्किटेक्ट बनना चाहते थे, लेकिन अपने पिता की इच्छा पर वकालत का रास्ता चुना। उन्होंने 1985 में वकालत शुरू की और 2005 में बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश बने। 2019 में वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और अब तक 700 से अधिक बेंच का हिस्सा रह चुके हैं।
जस्टिस गवई के 10 चर्चित फैसले
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प्रबीर पुरकायस्थ को जमानत: न्यूजक्लिक के संस्थापक को यूएपीए मामले में जमानत देकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सशक्त टिप्पणी।
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मनीष सिसोदिया को राहत: दिल्ली शराब नीति केस में सुनवाई के दौरान गिरफ्तारी की प्रक्रिया पर महत्वपूर्ण निर्देश दिए।
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बुलडोजर न्याय पर सख्ती: बिना कानूनी प्रक्रिया के घर गिराए जाने को असंवैधानिक करार देते हुए तल्ख टिप्पणी।
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SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर की वकालत: सात सदस्यीय संविधान पीठ में शामिल रहकर सामाजिक न्याय के लिए नया दृष्टिकोण रखा।
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इलेक्टोरल बॉन्ड पर फैसला: चुनावी फंडिंग को लेकर पारदर्शिता की मांग को संविधान पीठ में मजबूती दी।
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अनुच्छेद 370 पर राय: जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा हटाने के फैसले को वैध ठहराने वाली पीठ का हिस्सा रहे।
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प्रशांत भूषण अवमानना केस: न्यायपालिका की गरिमा के पक्ष में ठोस रुख।
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नोटबंदी पर मुहर: आर्थिक फैसलों की संवैधानिक वैधता को लेकर ऐतिहासिक निर्णय में अहम भूमिका निभाई।
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राहुल गांधी केस से खुद को अलग किया: पारिवारिक राजनीतिक संबंधों को देखते हुए निष्पक्षता की मिसाल पेश की।
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वक्फ संशोधन कानून की सुनवाई करेंगे: संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले इस अहम मामले में निर्णायक भूमिका निभाने की संभावना।
संविधान सर्वोच्च है, न कि संस्थाएं: गवई
शपथ ग्रहण से पहले जस्टिस गवई ने यह स्पष्ट किया कि उनके लिए संविधान सर्वोच्च है, न कि संसद या न्यायपालिका। साथ ही उन्होंने यह भी साफ किया कि वे रिटायरमेंट के बाद कोई राजनीतिक या संवैधानिक पद स्वीकार नहीं करेंगे। जजों और नेताओं की मुलाकातों पर उन्होंने कहा कि इसमें कुछ भी अनुचित नहीं जब तक नीयत साफ हो।
6 महीने का कार्यकाल
जस्टिस गवई का कार्यकाल 24 नवंबर 2025 तक रहेगा। उनके बाद वरिष्ठता क्रम में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस बी. वी. नागरत्ना CJI बनने की कतार में हैं।