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उपराष्ट्रपति धनखड़ बोले- जस्टिस वर्मा केस में हो तत्काल FIR, अधजले नोटों की जड़ तक पहुंचना जरूरी
Jagran Desk
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दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से मिले अधजले नोटों के मामले में देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सख्त प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इस मामले को भारतीय न्यायपालिका की नींव को हिला देने वाला बताया और तत्काल एफआईआर दर्ज करने की मांग की।
धनखड़ ने यह टिप्पणी कोच्चि स्थित नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एडवांस्ड लीगल स्टडीज़ (NUALS) में आयोजित एक सेमिनार को संबोधित करते हुए की। उन्होंने कहा कि यह मामला बेहद गंभीर है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
धनखड़ ने क्या कहा:
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"कैश कहां से आया, ये जानना जरूरी है।"
उपराष्ट्रपति ने कहा कि जिस तरह 500-500 रुपए के अधजले नोटों की बोरियां जज के घर से बरामद हुई हैं, उससे कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं। उन्होंने कहा, “क्या यह काला धन है? इसका मालिक कौन है? इसकी तह तक पहुंचना अनिवार्य है।” -
"FIR दर्ज नहीं कर पाना दुर्भाग्यपूर्ण"
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले के चलते वर्तमान कानून के तहत किसी जज के खिलाफ तत्काल FIR दर्ज नहीं की जा सकती, जो कि केंद्र सरकार की कार्रवाई को सीमित करता है। -
"14 मार्च की आग: न्यायपालिका के लिए चेतावनी"
उपराष्ट्रपति ने इस पूरे घटनाक्रम को शेक्सपियर के नाटक ‘जूलियस सीज़र’ से जोड़ा। उन्होंने कहा कि 14 मार्च—जिस दिन यह घटना हुई—उसी दिन जूलियस सीज़र की हत्या हुई थी, और यह भारतीय न्यायपालिका के लिए भी एक संकट का संकेत है।
पृष्ठभूमि: क्या है पूरा मामला?
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14 मार्च 2025 को दिल्ली के लुटियंस ज़ोन स्थित एक सरकारी बंगले में आग लगी थी, जो दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा को आवंटित था।
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स्टोर रूम में दमकलकर्मियों को जली हुई नोटों की बोरियों में करीब 15 करोड़ रुपए मिले।
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इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 3 सदस्यीय आंतरिक जांच समिति गठित की, और वर्मा को किसी भी प्रकार की न्यायिक जिम्मेदारी न देने के निर्देश दिए।
जस्टिस वर्मा का पक्ष
सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा ने कहा कि विवादित स्टोर रूम खुली जगह है और वहां कोई भी आ-जा सकता है। उनका दावा है कि न तो उन्होंने और न ही उनके परिवार ने वहां कभी कोई नकद रखा। उन्होंने खुद को षड्यंत्र का शिकार बताया है।
सवालों के घेरे में न्यायपालिका की पारदर्शिता
उपराष्ट्रपति ने इस मौके पर यह भी कहा कि सेवानिवृत्त जजों को सरकारी पद मिलने की परंपरा भी समीक्षा योग्य है।
उन्होंने सवाल उठाया कि जब लोक सेवा आयोग और सीएजी जैसे पदों पर रिटायरमेंट के बाद नियुक्ति नहीं होती, तो जजों को क्यों?
संविधान की प्रस्तावना और शक्तियों के संतुलन पर भी बोले
धनखड़ ने संविधान की प्रस्तावना को “राष्ट्र की आत्मा” बताते हुए कहा कि इसमें बदलाव नहीं होने चाहिए।
उन्होंने न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच स्पष्ट सीमाओं के सम्मान की आवश्यकता पर भी बल दिया।
आगे क्या?
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जस्टिस वर्मा छुट्टी पर हैं, उनके कॉल डिटेल्स की जांच की जा रही है।
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सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें फिलहाल कोई ज्यूडिशियल काम न देने के निर्देश जारी किए हैं।
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उपराष्ट्रपति की यह टिप्पणी मामले को एक राष्ट्रीय बहस का विषय बना रही है।