“सीमा कपूर का बेबाक इंटरव्यू: थिएटर से फिल्म तक और ओम पुरी के साथ जीवन का सफर”

जागरण संवाददाता, भोपाल

कवयित्री, लेखिका और रंगमंच से जुड़ी सीमा कपूर हाल ही में भोपाल में आयोजित सदानीरा कविता कार्यक्रम में हिस्सा लेने आईं। दैनिक जागरण से खास बातचीत में उन्होंने अपनी जिंदगी, अभिनेता ओम पुरी और अपनी आत्मकथा “यूँ गुजरी है अब तलक” के पहलू साझा किए।

सीमा बताती हैं कि उनका परिवार हमेशा से कला और सृजन से जुड़ा रहा है। दादा डॉ. कृपा राम कपूर सेना में कर्नल थे और लाहौर में तैनात रहे। वे दिल्ली से होते हुए मुंबई पहुंचे, जहां परिवार ने एक पारसी थिएटर कंपनी की नींव रखी। यह दल कभी 200-250 लोगों का हुआ करता था, मगर बॉलीवुड के बढ़ते असर से थिएटर का दौर खत्म होने लगा। खर्च चलाने के लिए पिता को घर, ज़मीन और माँ के गहने तक बेचने पड़े। यह थिएटर 1976 तक चला।

सीमा कहती हैं, “मां कमल सबनम कपूर बेहतरीन कवयित्री थीं, जिनकी रचनाएँ आज भी दिल में बसती हैं। मैंने अपनी किताब में उनकी एक कविता साझा की है।” परिवार में सभी भाई-बहनों ने कला को चुना — सीमा लेखिका और निर्देशक बनीं, भाई अत्रू अभिनेता, रंजीत भाई थिएटर निर्देशक और छोटा भाई कवि-गीतकार है।WhatsApp Image 2025-06-24 at 11.36.45 AM

ओम पुरी से रिश्ता: प्यार, जुदाई और फिर आखिरी साथ
सीमा बताती हैं, “ओम पुरी से पहली मुलाकात 1979 में भाई रंजीत कपूर के नाटक ‘बिच्छू’ के दौरान हुई थी। धीरे-धीरे दोस्ती गहरी हुई और यह रिश्ता प्यार में बदल गया। 11 साल तक साथ रहे और 1990 में शादी कर ली।” मगर शादी के 3 साल बाद वे अलग हो गए। सीमा कहती हैं, “क्यों अलग हुए यह ना तो मैं जान पाई, ना ही ओम साहब कभी जान सके।”seema kapoor (1)

सीमा आगे बताती हैं, “14 साल जुदा रहने के बाद जब हमें फिर साथ लौटने का मौका मिला तो यह साथ मुश्किल से 6 महीने टिक पाया। इसके बाद ओम साहब हमें और इस दुनिया को अलविदा कह गए।”

दर्द से सीखा आगे बढ़ना
सीमा कहती हैं, “ओम साहब के जाने के बाद मैं डिप्रेशन में चली गई थी, मगर पढ़ाई, साधना और लेखन में डूबकर मैंने अपनी राह खोजी। आज मैं पूरी तरह आत्मनिर्भर हूं और आगे बढ़ रही हूं।”

सीमा यह भी कहती हैं कि उन्हें ओम पुरी या नंदिता से कोई नाराजगी या कड़वाहट नहीं है, बस एक सवाल है जो हमेशा दिल में रहेगा — “उन्होंने अपने दोस्त के साथ ऐसा क्यों किया?”

“यूँ गुजरी है अब तलक” में समेटे जीवन के सभी रंग
सीमा कपूर बताती हैं कि लगभग 400 पन्नों में रची गई उनकी आत्मकथा “यूँ गुजरी है अब तलक” में जीवन के सभी पहलू दर्ज हैं — ओम पुरी से मिलना और बिछड़ना, परिवार और समाज से जुड़े अनुभव, बचपन में सहा हुआ शोषण तक। यह किताब उनके जीवन का बेहद ईमानदार लेखा-जोखा है, जिसमें हर पल का सच बेबाकी से दर्ज है।

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