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पुरी में फिर गूंजेगा जय जगन्नाथ! कल से शुरू होगी दिव्य रथ यात्रा, लाखों श्रद्धालु होंगे साक्षी
Dharm desk

27 जून से ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की विश्वविख्यात रथ यात्रा का शुभारंभ होने जा रहा है। आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से शुरू हो रही यह यात्रा पूरे देश और दुनिया के करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था, भक्ति और संस्कृति का सबसे पावन उत्सव बन गई है।
जय जगन्नाथ के जयकारों और शंख-घंटों की गूंज से पुरी एक बार फिर आध्यात्मिक ऊर्जा से भर उठेगा।
भक्ति, संस्कृति और समरसता का प्रतीक
भगवान जगन्नाथ की यह यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का पर्व है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति में भाईचारे, समानता और विनम्रता का भी संदेश देती है। मान्यता है कि जो श्रद्धालु भगवान के रथ की रस्सी खींचता या उसे छूता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
गुंडिचा मंदिर की ओर यात्रा
रथ यात्रा के पहले दिन भगवान श्रीजगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा मुख्य मंदिर से निकलकर गुंडिचा मंदिर (मौसी का घर) की ओर जाते हैं, जहां वे 7 दिन तक वास करते हैं। इसके बाद ‘बहुड़ा यात्रा’ (वापसी यात्रा) के साथ तीनों देवता श्रीमंदिर लौटते हैं।
रथों की भव्यता और पारंपरिक शिल्प कला
तीनों रथ—नंदीघोष (जगन्नाथ), तालध्वज (बलभद्र), और दर्पदलन (सुभद्रा)—विशेष रूप से चुने गए लकड़ी से बनाए गए हैं। रथों की ऊंचाई क्रमशः 45 फीट, 44 फीट और 43 फीट है। इनमें 18, 16 और 14 पहिए होते हैं। पारंपरिक कारीगरों ने इन रथों को महीनों की मेहनत से तैयार किया है।
गजपति महाराजा की ‘छेर पहरा’ रस्म
रथ यात्रा से पूर्व पुरी के गजपति महाराजा पारंपरिक ‘छेर पहरा’ रस्म निभाते हैं। वे स्वर्ण झाड़ू से रथों के मार्ग को साफ करते हैं, जो विनम्रता और ईश्वर के समक्ष समानता का प्रतीक माना जाता है।
विदेशी श्रद्धालुओं का भी आकर्षण
रथ यात्रा की आध्यात्मिक दिव्यता न केवल भारत बल्कि विदेशों के भक्तों को भी आकर्षित करती है। हरे कृष्ण हरे राम के संकीर्तन के साथ श्रद्धालु रथ खींचने का सौभाग्य पाते हैं। यह आयोजन सांस्कृतिक एकता और वैश्विक आस्था का अद्भुत संगम बन चुका है।