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जगन्नाथ रथ यात्रा में तीन रथों की विशेषता, जानिए किस रथ में कौन होता है सवार

जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि भारत की गहराई से जुड़ी सांस्कृतिक पहचान है। यह एकमात्र ऐसा मौका होता है जब भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा मंदिर से बाहर निकलकर आम भक्तों के बीच आते हैं। इस दौरान तीन रथ बनाए जाते हैं—हर रथ का नाम, रंग, प्रतीक और आकार अलग होता है।
1. नंदीघोष: भगवान जगन्नाथ का रथ
भगवान जगन्नाथ का रथ ‘नंदीघोष’ या ‘गरुड़ध्वज’ कहलाता है। यह तीनों में सबसे बड़ा और भव्य होता है।
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रंग: लाल और पीला
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पहिए: 16
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ऊंचाई: लगभग 45 फीट
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प्रतीक: गरुड़ देव
इस रथ में भगवान जगन्नाथ स्वयं विराजते हैं और यह यात्रा के मध्य में चलता है।
2. तालध्वज: बलराम जी का रथ
भगवान बलराम का रथ ‘तालध्वज’ कहलाता है।
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रंग: लाल और हरा
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पहिए: 14
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ऊंचाई: लगभग 43.3 फीट
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प्रतीक: ताड़ का पेड़
यह रथ यात्रा में सबसे आगे चलता है और बलराम जी के तेज, सामर्थ्य और मार्गदर्शन का प्रतीक माना जाता है।
3. दर्पदलन: देवी सुभद्रा का रथ
देवी सुभद्रा का रथ ‘दर्पदलन’ कहलाता है, जिसका अर्थ है — अहंकार को मिटाने वाली।
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रंग: काला और लाल
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पहिए: 12
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ऊंचाई: लगभग 42 फीट
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प्रतीक: कमल फूल
यह रथ यात्रा में बीच में चलता है और बहन सुभद्रा के सौम्य, करुणामयी रूप को दर्शाता है।
रथ निर्माण की विशेषता
तीनों रथ हर साल नए बनाए जाते हैं और इसके लिए केवल दारु (नीम की पवित्र लकड़ी) का उपयोग होता है। इस कार्य में सैकड़ों शिल्पकार महीनों पहले से जुट जाते हैं। हर रथ के लिए निश्चित संख्या में पहिए, लकड़ी और माप का पालन किया जाता है।
सार्वजनिक उत्सव का प्रतीक
जगन्नाथ यात्रा इस बात का प्रतीक है कि ईश्वर हर किसी के लिए सुलभ हैं। यह पर्व भक्ति, समानता और जनसंपर्क का आदर्श बन गया है। लाखों श्रद्धालु हर साल पुरी पहुंचते हैं और रथों को खींचने का सौभाग्य पाते हैं।