योगिनी एकादशी कल: जानिए शुभ मुहूर्त, व्रत विधि, पारण समय और धार्मिक महत्व

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आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाने वाली योगिनी एकादशी इस वर्ष 21 जून 2025, शनिवार को पड़ रही है। यह एकादशी व्रत विशेष रूप से भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे श्रद्धा, शुद्धता और नियमों के साथ रखने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति और अंततः मोक्ष की प्राप्ति मानी जाती है।

शुभ मुहूर्त और तिथि

  • एकादशी तिथि प्रारंभ: 21 जून को सुबह 07:18 बजे

  • एकादशी तिथि समाप्त: 22 जून को सुबह 04:27 बजे

  • व्रत पारण मुहूर्त: 22 जून को सुबह 09:41 बजे से दोपहर 01:47 बजे तक (हरिवासर समाप्ति के बाद)

 पूजा के शुभ समय

  • ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:04 – 04:44

  • अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11:55 – 12:51

  • अमृत काल: दोपहर 01:12 – 02:41

  • गोधूलि मुहूर्त: शाम 07:21 – 07:41

  • भद्रा काल: सुबह 05:24 – 07:18 (इस दौरान पूजा नहीं करें)


 पूजा विधि और नियम

  • सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके पीले वस्त्र धारण करें और पूजा स्थान को गंगाजल से पवित्र करें।

  • भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की मूर्ति/तस्वीर को पीले फूल, तुलसीदल, धूप-दीप, नैवेद्य अर्पित करें।

  • ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का 108 बार जाप करें।

  • व्रत कथा का श्रवण या पाठ करना अनिवार्य माना जाता है।

  • यदि निर्जल व्रत संभव न हो तो फलाहार और सेंधा नमक युक्त भोजन किया जा सकता है।

  • रात्रि में जागरण कर भजन-कीर्तन करना पुण्यदायक होता है।


 क्या खाएं – क्या न खाएं

सेवन योग्य:
फल, दूध, दही, मखाना, साबूदाना, कुट्टू-सिंघाड़ा आटा, आलू, लौकी, गाजर, शकरकंद, सूखे मेवे।

वर्जित खाद्य पदार्थ:
चावल, गेहूं, दालें, प्याज, लहसुन, नशीले पदार्थ, सामान्य नमक।


 व्रत पारण विधि

  • 22 जून को स्नान के बाद विष्णु पूजा करें और प्रसाद ग्रहण करें।

  • किसी ब्राह्मण को भोजन और दक्षिणा दें।

  • उसके बाद ही व्रतधारी सात्विक आहार ग्रहण करें।


 धार्मिक महत्व

योगिनी एकादशी का व्रत न केवल व्यक्ति को पापों से मुक्त करता है, बल्कि जीवन की विघ्न-बाधाओं को दूर कर आर्थिक, मानसिक और पारिवारिक संतुलन भी प्रदान करता है। मान्यता है कि इस व्रत से 88,000 ब्राह्मणों को भोजन कराने जितना पुण्य मिलता है और गंभीर बीमारियों से भी राहत मिलती है।


 उपसंहार

योगिनी एकादशी व्रत एक आध्यात्मिक यात्रा है, जो आत्मशुद्धि, भगवान विष्णु की भक्ति और मोक्ष की ओर बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करती है। श्रद्धा और नियमपूर्वक किया गया यह उपवास निश्चित ही मानव जीवन को उच्चतम उद्देश्य की ओर अग्रसर करता है।

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