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सत्यकथा : "मां, घर चलो न..." – बेटे की आखिरी पुकार और मां की गोलियों वाली जवाबी चुप्पी
Satyakatha

धार जिले के बाग क्षेत्र से सच्ची घटना पर आधारित
"मां! चलो न घर..."
यह शब्द एक बेटे के दिल की आखिरी पुकार थे।
जिस मां के लिए उसने समाज से, रिश्तेदारों से, खुद के बाप से लड़ाई ली — उसी मां ने उसका गला गोलियों से छलनी कर दिया।
और वजह?
क्योंकि बेटा उस प्रेम की राह में दीवार बन रहा था जो वासना, बेशर्मी और अपराध से लिपटी एक लंबी कहानी बन चुका था।
■ 14 जून 2025, दोपहर | गांव टकरी, थाना बाग, जिला धार
थाना प्रभारी कैलाश चौहान को जैसे ही सूचना मिली कि एक युवक की खेत में गोली मारकर हत्या कर दी गई है, वे सारे काम छोड़कर घटनास्थल पर पहुंचे।
टकरी गांव के किसान दीवान सिंह के खेत में, एक 18-20 साल का युवक छर्रों से छलनी हालत में मृत पड़ा था।
कुछ ग्रामीणों ने शव की पहचान की —
“इकेश चौघड़ है साहब… चंपा का बेटा। उसकी मां ने ही गोली मारी है!”
■ मां ने की बेटे की हत्या: ये कैसे मुमकिन?
सुनते ही टीआई भी सन्न रह गए।
मां और बेटे में किसी बात पर झगड़ा हुआ था, ग्रामीणों ने देखा —
और फिर सबके सामने मां ने बेटे पर कट्टा तानकर गोली चला दी।
सारे रिश्ते, खून के बंधन, ममता का भ्रम — सब एक पल में टूट गया।
■ पिता की पुकार: "मना किया था बेटा, वो नहीं मानेगी"
घटना की जानकारी मिलते ही झाबुआ जिले के राणापुर से करण सिंह — इकेश के पिता — भागे-भागे टकरी पहुंचे।
शव से लिपटकर फफकते हुए उन्होंने कहा —
“मैंने मना किया था बेटा, मत जा... वो तुझे नहीं अपनाएगी। वो कभी मां थी ही नहीं। अब मैं किसके लिए जिऊं?”
करण सिंह गम में पागल होकर खेत के कुएं में कूदने भागे —
पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया।
शायद वह बच गए, लेकिन उनके भीतर कुछ उस पल मर गया था।
■ चंपा की कहानी: विवाह, वापसी और वासना
करण सिंह ने पुलिस को बताया —
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चंपा से उनकी शादी 19 साल पहले हुई थी।
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शादी के दो दिन बाद ही चंपा मायके चली गई, फिर कभी नहीं लौटी।
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10 महीने बाद उसने बेटा इकेश को लौटा दिया —
“ये तुम्हारा खून है, तुम पालो। मुझे अपनी जिंदगी जीनी है।”
करण ने अकेले बेटे की परवरिश की। मां के दूध से भी वंचित बच्चा बाप के आँचल में बड़ा हुआ।
पर जैसे-जैसे बड़ा हुआ, बेटे के भीतर मां के लिए प्यार और सवाल दोनों बढ़ते गए।
■ बेटे की जिद: "मैं मां को पाप से निकालूंगा"
इकेश को मां से जुड़ी सच्चाई धीरे-धीरे पता चलने लगी।
उसने सुना कि उसकी मां किसी दीवान सिंह के साथ अवैध संबंधों में लिप्त है।
लेकिन बेटा था, मां को गलत मानने से इंकार करता रहा।
एक दिन ठान लिया —
“मैं मां को वहां से निकालूंगा, अपने साथ लेकर आउंगा।”
14 जून को इकेश कुछ रिश्तेदारों को साथ लेकर टकरी पहुंचा।
■ खेत में मिली मौत: बेटे को देख बौखलाई मां
चंपा उस वक्त दीवान सिंह के साथ खेत की झोपड़ी में निर्वस्त्र अवस्था में वासना में लिप्त थी।
इकेश और उसके रिश्तेदारों ने सब अपनी आंखों से देखा।
इकेश ने मां को टोका, रोका —
"मां, ये क्या कर रही हो? घर चलो!"
पर चंपा को जैसे गुनाह पर गर्व था।
उसे कपड़े पहनने की फुरसत नहीं थी।
बेटे की बातों से चिढ़ी — और दीवान सिंह से कट्टा छीनकर बोली:
“...तो तू किस खेत की मूली है!”
और... ट्रिगर दबा दिया।
छर्रे इकेश के माथे, गले और सीने में जा लगे।
वो वहीं गिर पड़ा।
मां का प्यार नहीं मिला, पर मौत ज़रूर मिल गई — मां के हाथों से।
■ रिश्तेदारों की आंखों के सामने हत्या
चंपा ने गोली चलाने के बाद रिश्तेदारों को भी धमकी दी:
"अगर किसी ने कुछ कहा तो उसे भी उड़ा दूंगी!"
डरे हुए लोग गांव से भागे और करण सिंह को सूचना दी।
पुलिस को बुलाया गया।
■ भागने की कोशिश में अय्याशी
पुलिस ने तलाशी शुरू की।
कुछ ही घंटों में खबर मिली —
“दीवान सिंह की मोटरसाइकिल जंगल में मिली है।”
जब पुलिस झाड़ियों के बीच पहुंची, तो एक पेड़ के नीचे चंपा और दीवान सिंह पूर्णतः निर्वस्त्र हालत में रंगे हाथ पकड़े गए।
हत्या के बाद भी उनके व्यवहार में कोई पछतावा नहीं था।
■ प्रेम की नींव में पड़ा बलात्कार
जांच में सामने आया —
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चंपा और दीवान बचपन से साथ बड़े हुए।
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12 साल की उम्र में दीवान ने चंपा को अश्लील वीडियो दिखाकर उसका यौन शोषण शुरू किया।
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धीरे-धीरे चंपा दीवान की रखैल बन गई।
जब चंपा की शादी करण सिंह से हुई, तो वह केवल दो रात ससुराल रही।
फिर मायके लौटकर दीवान के साथ रहने लगी।
दीवान ने उसे बंटाई में खेत दिया और बीवी जैसे अपने घर में रख लिया।
■ दीवान की बीवी भी डरी हुई
दीवान की पत्नी ने पुलिस को बताया:
“वो मेरे पति को सरेआम मेरे सामने ले जाती थी। एक बार मैंने रोका तो कुल्हाड़ी लेकर मुझ पर दौड़ पड़ी थी।”
वह अब चंपा से इतनी डरी हुई है कि उसने दीवान के साथ अपना कोई हक जताना ही छोड़ दिया।
■ एक सवाल: क्या यह एक ‘मां’ की परिभाषा है?
इकेश को सिर्फ मां से प्यार चाहिए था।
वो बार-बार कहता रहा —
“मां, घर चलो न…”
पर यह मां ममता नहीं, वासना की गुलाम बन चुकी थी।
और उसने अपने बेटे को सिर्फ इसलिए मार डाला —
क्योंकि वो उसकी बेवफाई की गवाही बन चुका था।
यह सत्यकथा उस रिश्ते पर प्रश्नचिन्ह है, जिसे हम सबसे पवित्र मानते हैं — मां और संतान का।
कभी-कभी एक स्त्री, परिस्थितियों, अपराध और वासना की ऐसी जंजीरों में जकड़ जाती है कि वह ‘मां’ से ‘हत्यारिन’ बन जाती है।
सत्यकथा आपको सत्य से रुबरू कराती है — चाहे वह कितना भी भयावह क्यों न हो।
अगर आपके पास भी ऐसी कोई सच्ची और अनकही कहानी है — साझा करें।