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DMF घोटाले में बड़ा खुलासा: नियम बदले, करोड़ों की रिश्वत बांटी गई
Raipur, CG

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में जिला खनिज निधि (DMF) में हुए बहुचर्चित घोटाले में एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) की जांच से चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। ACB की रिपोर्ट के अनुसार घोटाले के लिए खर्च से जुड़े नियमों में जानबूझकर बदलाव किए गए ताकि रिश्वतखोरी को आसान बनाया जा सके। इस घोटाले में कोरबा की तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू को करीब 57.85 करोड़ रुपए की अवैध राशि मिली।
40 प्रतिशत कमीशन पर टेंडर मंजूरी
ACB द्वारा कोर्ट में दाखिल 6 हजार पन्नों की चार्जशीट में यह उल्लेख है कि टेंडर स्वीकृति के बदले टेंडर अमाउंट का 40% हिस्सा तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू को दिया जाता था। इसके अलावा सीईओ को 5%, एसडीओ को 3% और सब इंजीनियर को 2% कमीशन मिलता था।
रिश्वत के लिए बदले गए नियम
घोटाले को अंजाम देने के लिए DMF फंड के उपयोग से जुड़े नियमों में बदलाव किए गए। खेल सामग्री, कृषि उपकरण, मेडिकल किट और प्रशिक्षण जैसी नई श्रेणियों को शामिल किया गया ताकि ऐसे प्रोजेक्ट चुने जा सकें जिनमें घूस की गुंजाइश अधिक हो।
रानू साहू की नियुक्ति भी घोटाले के तहत
दस्तावेजों के अनुसार, रानू साहू को कोरबा कलेक्टर बनाए जाने का मकसद ही था इस भ्रष्टाचार योजना को अमल में लाना। उनके साथ राज्य सेवा की अधिकारी माया वारियर, कोल व्यवसायी सूर्यकांत तिवारी और शासन से जुड़े प्रभावशाली लोग भी शामिल थे।
माया वारियर को कार, नकद और वेतन में घूस
ACB की जांच में सामने आया कि माया वारियर ने टेंडर मंजूरी के एवज में 25.95 लाख की इनोवा क्रिस्टा कार और करीब 3 करोड़ रुपए अलग-अलग वेंडर्स से वसूले। उन्होंने वेंडर संजय शेंडे की कंपनी में अपनी बहन को बिना काम के फर्जी रूप से नियुक्त करवा कर 9.10 लाख रुपए वेतन के रूप में भी लिए।
150 करोड़ के टेंडर के बदले 19 करोड़ की घूस
कोरबा जिले के पाली और कटघोरा जनपद पंचायत में सीईओ रहे वीके राठौर ने कुल 19 करोड़ की रिश्वत ली। इसमें 5 करोड़ मनोज द्विवेदी से, 4 करोड़ राकेश शुक्ला से और 10 करोड़ संजय शेंडे से शामिल हैं। इन पैसों को माया वारियर के निर्देश पर बिचौलियों को सौंपा गया।
फर्जी नियुक्तियों से भी कमाया पैसा
माया वारियर ने घोटाले में संलिप्त वेंडर की कंपनी में अपनी बहन को नियुक्त करवा कर वेतन के नाम पर रकम वसूली। यह भी साबित हुआ कि बहन ने कंपनी में कभी काम ही नहीं किया।