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‘मां’ मूवी रिव्यू: बेटी के लिए काजोल की जंग, डर और ममता का संतुलित मेल
Bollywod

अजय देवगन के प्रोडक्शन हाउस की नई पेशकश ‘मां’ इस हफ्ते सिनेमाघरों में दर्शकों के सामने है। इस बार काजोल एक ऐसी मां के रूप में नजर आती हैं, जो अपनी बेटी को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। फिल्म में हॉरर, पौराणिकता और इमोशन का अनोखा मिश्रण है, जो दर्शकों को झकझोरता भी है और डराता भी है।
कहानी: श्रापित गांव में मां की ममता की परीक्षा
फिल्म की कहानी चंद्रपुर नाम के गांव की है, जहां आज भी नवजात बेटियों की बलि चढ़ाने की परंपरा जारी है। इस पुरानी परंपरा की वजह एक खानदानी श्राप है। यहां आती है काजोल अपनी बेटी के साथ, और कहानी करवट लेती है। गांव में एक प्राचीन दैत्य की नज़र बच्ची पर पड़ती है, और एक मां की असली लड़ाई वहीं से शुरू होती है।
प्रस्तुति: हॉरर में पौराणिक ट्विस्ट
'मां' सिर्फ एक डरावनी फिल्म नहीं है, बल्कि इसमें मां दुर्गा और रक्तबीज की कथा के गहरे संदर्भ हैं। ये फिल्म पारंपरिक हॉरर के ढांचे से बाहर निकलकर एक नई परिभाषा रचती है। विशेष रूप से फिल्म की सिनेमेटोग्राफी और VFX इसे विज़ुअली शानदार बनाते हैं।
परफॉर्मेंस: काजोल की दमदार वापसी
काजोल इस फिल्म की सबसे मजबूत कड़ी हैं। उन्होंने अपने किरदार को सिर्फ निभाया नहीं, बल्कि जिया है। जब वो दैत्य से अपनी बेटी को बचाने के लिए लड़ती हैं, तो हर दर्शक उनकी भावनाओं से जुड़ जाता है। रोनित रॉय ने भी अपने किरदार को संजीदगी से निभाया है। हालांकि कुछ सह-कलाकारों के साथ न्याय नहीं हो पाया, क्योंकि उनके रोल सीमित रखे गए।
निर्देशन और लेखन
डायरेक्टर विशाल फूरिया ने फिल्म को फास्ट-पेस्ड और सिनेमाई रूप से रोचक बनाया है। हालांकि उनकी स्टाइल अब दोहराव महसूस कराती है। ‘छोरी’ जैसी पिछली फिल्मों की छाया इस फिल्म में भी दिखती है, और कहानी कुछ जगहों पर अनुमानित लगती है।
कमियां भी हैं
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कहानी में नया पन कम है
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इमोशनल कनेक्ट कमजोर पड़ता है
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सहायक किरदारों की प्रतिभा का उपयोग नहीं हुआ
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बंगाली किरदारों की भाषा-शैली कृत्रिम लगती है
तुलना: ‘स्त्री 2’ और ‘शैतान’ यूनिवर्स
कंटेंट में जहां ‘मां’ औसत लगती है, वहीं इसकी टेक्निकल क्वालिटी इसे ‘स्त्री 2’ से बेहतर बनाती है। ‘शैतान’ यूनिवर्स का हिस्सा होने के नाते, यह एक मजबूत विस्तार है जो दर्शकों की उम्मीदों पर खरा उतरता है।
देखें या नहीं?
अगर आप हॉरर फिल्मों के शौकीन हैं, और एक भावुक कहानी में डर का तड़का पसंद करते हैं तो ‘मां’ आपके लिए बनी है। काजोल की दमदार अदाकारी और सिनेमाई अनुभव इसे थिएटर में देखने लायक बनाते हैं।