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₹65,300 करोड़ का वार्षिक घाटा: जीएसटी की उलटी टैक्स संरचना भारत की रीसाइक्लिंग अर्थव्यवस्था को कर रही कमजोर
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भारत की पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग) अर्थव्यवस्था इस समय एक जटिल विरोधाभास में फंसी हुई है। एक ओर यह हरित विकास, प्रदूषण नियंत्रण और संसाधन बचत में अहम भूमिका निभा सकती है, वहीं दूसरी ओर वर्तमान गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) व्यवस्था इस क्षेत्र की क्षमता को सीमित कर रही है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की ताज़ा रिपोर्ट “रिलैक्स द टैक्स 2025” के अनुसार, भारत इस खामी के कारण हर साल करीब ₹65,300 करोड़ के राजस्व नुकसान का सामना कर रहा है — जो मौजूदा औपचारिक रीसाइक्लिंग सेक्टर से मिलने वाले ₹30,900 करोड़ के टैक्स संग्रह से दोगुने से भी ज्यादा है।
कचरा क्षेत्र में 90% तक अनौपचारिकता
रिपोर्ट के मुताबिक भारत का रीसाइक्लिंग क्षेत्र अब भी बड़े पैमाने पर असंगठित है।
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कागज और कांच में 95%
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प्लास्टिक में 80%
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ई-कचरे में 90%
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और धातुओं में 65% काम अनौपचारिक क्षेत्र में होता है।
यह केवल सांख्यिकीय आंकड़े नहीं, बल्कि एक आर्थिक अवसर की भारी क्षति है जो पर्यावरणीय लक्ष्यों और राजस्व दोनों को प्रभावित कर रही है।
उलटी टैक्स संरचना से बढ़ी परेशानी
रीसाइक्लिंग क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या जीएसटी की “इनवर्टेड टैक्स स्ट्रक्चर” है।
रीसाइक्लिंग के लिए खरीदे जाने वाले PET स्क्रैप पर 18% टैक्स लगता है, जबकि उससे तैयार रीसाइक्लड फाइबर पर सिर्फ 5% टैक्स है।
नतीजा — छोटे और मझोले रीसाइक्लरों (MSMEs) पर इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का बोझ बढ़ जाता है और नकदी प्रवाह की समस्या गहरा जाती है।
अनौपचारिक व्यापार को मिल रहा बढ़ावा
उच्च टैक्स दरों के कारण कई छोटे रीसाइक्लर जीएसटी व्यवस्था के दायरे से बाहर रहना ही बेहतर समझते हैं। यह स्थिति नकदी आधारित “ग्रे मार्केट” को बढ़ावा देती है, जहां टैक्स चोरी आम बात है।
एक रीसाइक्लर ने कहा – “हम जीएसटी नियमों का पालन करते हैं, लेकिन कई बार महीनों बाद यह बताया जाता है कि स्क्रैप विक्रेता बोगस था, और हमें ब्याज सहित टैक्स वापस करना पड़ता है।”
ऐसे मामलों ने वैध कारोबारियों के सामने भरोसे का संकट खड़ा कर दिया है।
तीन स्तरों पर असर
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आर्थिक असर: धीमी रिफंड प्रक्रिया और टैक्स असमानता औपचारिक भागीदारी को हतोत्साहित करती है।
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राजकोषीय असर: ₹65,300 करोड़ का नुकसान देश के स्कूलों, स्वास्थ्य सुविधाओं और बुनियादी ढांचे से हटकर चला जाता है।
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पर्यावरणीय असर: महंगे टैक्स के कारण उद्योग गैर-रीसाइक्लड इनपुट का इस्तेमाल करने लगते हैं, जिससे लैंडफिल कचरा और उत्सर्जन दोनों बढ़ते हैं।
विशेषज्ञों के सुझाए समाधान
CSE और उद्योग जगत के विशेषज्ञों ने इस असंतुलन को ठीक करने के लिए चार प्रमुख सुधार सुझाए हैं —
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स्क्रैप पर जीएसटी दर घटाकर 5% की जाए, ताकि उलटा ढांचा समाप्त हो।
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रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म (RCM) लागू किया जाए, जिससे रीसाइक्लर सीधे सरकार को टैक्स दे सकें और कागजी लेनदेन खत्म हो।
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“पुराने स्क्रैप” के लिए अलग टैक्स श्रेणी बनाई जाए, जिसमें 1% नाममात्र टैक्स दर रखी जाए।
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रिफंड प्रक्रिया तेज की जाए, ताकि छोटे कारोबारियों की कार्यशील पूंजी अटके नहीं।
हरित रोजगार और निवेश का अवसर
इन सुधारों से न केवल टैक्स अनुपालन बढ़ेगा, बल्कि निजी निवेश को भी नई दिशा मिलेगी। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि टैक्स ढांचा अनुकूल बनाया गया, तो देश में लाखों नए हरित रोजगार सृजित किए जा सकते हैं और लैंडफिल कचरे में हजारों टन की कमी लाई जा सकती है।
बदलाव का समय अब
वर्तमान कर व्यवस्था एक विकृत प्रोत्साहन प्रणाली बन गई है जो ईमानदार रीसाइक्लरों को सज़ा देती है और अनौपचारिक कारोबारियों को बढ़ावा देती है। समय आ गया है कि सरकार जीएसटी संरचना में सुधार कर रीसाइक्लिंग सेक्टर को राहत दे — ताकि विकास, पर्यावरण संरक्षण और कर अनुपालन तीनों समानांतर रूप से आगे बढ़ सकें।
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