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हेल्थ इंश्योरेंस विवाद: अस्पताल और कंपनियों की खींचतान में पॉलिसीधारकों पर संकट
Business news

देश का हेल्थ इंश्योरेंस सेक्टर इन दिनों बड़ी चुनौती से गुजर रहा है। अस्पतालों और बीमा कंपनियों के बीच कैशलेस इलाज को लेकर जारी जंग का खामियाजा सीधा पॉलिसीधारकों को भुगतना पड़ रहा है।
हाल ही में एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (इंडिया) (AHPI), जिसमें 15 हजार से ज्यादा अस्पताल जुड़े हैं, ने स्टार हेल्थ इंश्योरेंस को 22 सितंबर से कैशलेस सुविधा बंद करने की चेतावनी दी थी। हालांकि फिलहाल इस फैसले को टाल दिया गया है।
पहले भी हो चुकी है टकराहट
इससे पहले 22 अगस्त 2025 को बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस और केयर हेल्थ इंश्योरेंस के खिलाफ भी अस्पतालों ने चेतावनी दी थी कि उनके ग्राहकों को कैशलेस इलाज नहीं मिलेगा। असहमति की सबसे बड़ी वजह टैरिफ दरों पर विवाद बताई जा रही है।
बीमा कंपनियों की जवाबी कार्रवाई
केवल अस्पताल ही नहीं, कई बीमा कंपनियां भी अपने पैनल से अस्पतालों को बाहर कर रही हैं।
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निवा बूपा हेल्थ इंश्योरेंस ने 16 अगस्त 2025 को मैक्स हेल्थकेयर को पैनल से हटाया।
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केयर हेल्थ इंश्योरेंस ने इसी साल फरवरी में दिल्ली-एनसीआर के कई अस्पतालों से करार खत्म किया।
बीच में फंस रहे मरीज
इस खींचतान से सबसे ज्यादा नुकसान मरीजों को हो रहा है।
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कई जगह पॉलिसीधारकों को कैशलेस इलाज नहीं मिल पा रहा।
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कई को एडवांस में पूरा बिल चुकाना पड़ता है।
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रीइंबर्समेंट भी समय पर न मिलने से बीमा होने के बावजूद आर्थिक संकट गहराता है।
बढ़ती मुश्किलें
भारत में अभी भी स्वास्थ्य बीमा लेने वालों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। ऐसे में यह विवाद नए ग्राहकों को भी हतोत्साहित कर रहा है। लोगों के मन में यह सवाल गहराने लगे हैं कि बीमा पॉलिसी लेने का फायदा ही क्या, अगर जरूरत के वक्त मदद न मिले?
पुराना विवाद, गहरी जड़ें
विशेषज्ञों के अनुसार यह टकराव नया नहीं है। कोरोना महामारी के बाद से अस्पताल और बीमा कंपनियों के बीच तनाव और गहराया है। अस्पतालों का आरोप है कि कंपनियां लगातार दरें घटाने का दबाव बनाती हैं, वहीं कंपनियों का कहना है कि अस्पताल मनमाने चार्ज वसूलते हैं।
नतीजा यह है कि समझौता कहीं होता नजर नहीं आ रहा और इस रस्साकशी में सबसे बड़ा नुकसान मरीजों को उठाना पड़ रहा है।