देश के हजारों अस्पतालों ने बंद की कैशलेस इलाज की सुविधा, जानें कारण और मरीजों के लिए क्या है समाधान

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देशभर के हजारों निजी अस्पतालों ने बीमा कंपनियों के साथ विवाद के कारण कैशलेस इलाज की सुविधा बंद कर दी है। इस फैसले का सीधा असर आम मरीजों पर पड़ रहा है। हेल्थ इंश्योरेंस कराने वाले अब अपनी जेब से भुगतान करने के लिए मजबूर हो सकते हैं।


 15,000 से ज्यादा अस्पतालों ने खत्म किया कैशलेस कॉन्ट्रैक्ट

बीमा कंपनियों के साथ अनुबंध खत्म करने वाले अस्पतालों की संख्या लगभग 15,000 बताई जा रही है। इस फैसले से मरीजों के लिए परेशानी बढ़ जाएगी, खासकर उन लोगों के लिए जिन्होंने हेल्थ पॉलिसी करवाई है ताकि मुश्किल वक्त में इलाज का खर्चा उनके लिए आसान हो।

विशेष रूप से बजाज आलियांज, केयर हेल्थ और निवा बूपा की कैशलेस सुविधा पर रोक लगाई गई है। अस्पतालों का आरोप है कि बीमा कंपनियां इलाज के खर्च में कटौती कर रही हैं और पुराने दरों पर इलाज कराने पर जोर दे रही हैं। इसके अलावा भुगतान में देरी और बिल स्वीकृति में लंबा समय मरीजों और अस्पतालों दोनों के लिए मुश्किलें बढ़ा रहा है।


 10 साल पुराने रेट पर इलाज की मांग

हरियाणा प्राइवेट अस्पताल एसोसिएशन के सदस्य डॉ. मनीष मधुकर का कहना है कि बीमा कंपनियां इलाज के 10 साल पुराने रेट पर ही भुगतान करना चाहती हैं। उनका कहना है कि इलाज के खर्च हर दो साल में अपडेट होते रहते हैं, लेकिन बीमा कंपनियां इस बात को मानने को तैयार नहीं हैं।

  • दवाइयों, जांचों और कमरे के किराए में कटौती

  • मरीज के डिस्चार्ज के बाद अंतिम बिल मंजूर करने में देरी

  • अस्पतालों को अनावश्यक अतिरिक्त खर्च उठाने पर मजबूर करना

डॉ. मधुकर के अनुसार, यही वजह है कि अस्पतालों ने कैशलेस सुविधा बंद करने का फैसला लिया।


 RGHS योजना में भी बकाया भुगतान का असर

राजस्थान में सरकार की RGHS हेल्थ स्कीम के तहत इलाज कर रहे लगभग 701 प्राइवेट अस्पतालों ने भी कैशलेस सुविधा बंद कर दी है। इन अस्पतालों पर सरकार पर लगभग 1,000 करोड़ रुपये बकाया है।

इसका असर 35 लाख से ज्यादा सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवार पर पड़ा है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कर्मचारी संगठनों ने इस मुद्दे को लेकर सरकार पर कड़ी टिप्पणी की है। अस्पतालों का कहना है कि जब तक बकाया राशि नहीं मिलेगी, वे इस योजना के तहत इलाज नहीं करेंगे।


 क्लेम रिजेक्ट का आंकड़ा

बीमा कंपनियां हर साल लाखों करोड़ रुपए के क्लेम रिजेक्ट कर रही हैं।

  • वित्त वर्ष 2023-24 में 26,000 करोड़ रुपए के क्लेम रिजेक्ट हुए

  • कुल 36.5 करोड़ पॉलिसी जारी हुई, लेकिन क्लेम केवल 7.66 लाख करोड़ रुपए के मंजूर हुए

  • करीब 3.53 लाख करोड़ रुपए के क्लेम किसी न किसी कारण से खारिज

इससे स्पष्ट होता है कि बीमा कंपनियां बड़े पैमाने पर प्रीमियम वसूल रही हैं, लेकिन मरीजों को फायदा कम पहुँच रहा है।


 पॉलिसीधारकों के लिए क्या करें?

  • अगर आपकी पॉलिसी बजाज आलियांज, केयर हेल्थ या निवा बूपा जैसी कंपनी की है, तो पॉलिसी की स्थिति जरूर जांचें

  • अस्पताल से कैशलेस सुविधा की पुष्टि कर लें, ताकि इलाज के वक्त परेशानी न हो।

  • जरूरत पड़ने पर उपचार के लिए कैशलेस से हटकर भुगतान विकल्प या निजी व्यवस्था की योजना बनाएं।

अस्पतालों और बीमा कंपनियों के बीच विवाद का सीधा असर आम मरीजों पर पड़ रहा है। 1 सितंबर से लागू यह फैसला मरीजों के लिए परेशानी पैदा कर सकता है। पॉलिसीधारकों को समय रहते सतर्क रहना और अपनी पॉलिसी की स्थिति जानना जरूरी है।

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