भारत में क्रिप्टो प्लेटफॉर्म्स के लिए 'स्थानीय उपस्थिति' क्यों हो अनिवार्य?

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भारत सरकार ने बीते कुछ वर्षों में क्रिप्टो सेक्टर को विनियमित करने की दिशा में ठोस पहल की है — मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम कानून (PMLA) के तहत क्रिप्टो कारोबारियों को रिपोर्टिंग के दायरे में लाना हो या कर व्यवस्था में बदलाव। इसके बावजूद कई विदेशी क्रिप्टो प्लेटफॉर्म अब भी भारतीय कानून की सीमा से बाहर काम कर रहे हैं, यह तर्क देते हुए कि उनकी भारत में कोई भौतिक उपस्थिति नहीं है। यही तर्क भारत की वित्तीय संप्रभुता और उपभोक्ता सुरक्षा के समक्ष एक गहरी चुनौती बनकर खड़ा हो गया है।

छाया बाजार बनाम जवाबदेही की लड़ाई

आज भारत में हजारों उपयोगकर्ता ऐसे विदेशी क्रिप्टो प्लेटफॉर्म्स से जुड़े हैं, जिनकी यहां न तो कोई रजिस्टर्ड कंपनी है, न कोई दफ्तर और न ही स्थानीय टीम। ये प्लेटफॉर्म न KYC का पालन करते हैं, न ही किसी नियामकीय जवाबदेही के अधीन आते हैं। इसके उलट भारत की घरेलू क्रिप्टो कंपनियाँ कठोर अनुपालन व्यवस्था से गुजरती हैं। इस दोहरे सिस्टम से एक 'छाया बाजार' उभरता जा रहा है — जो कर चोरी, पूंजी पलायन और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे गंभीर खतरों को जन्म दे रहा है।

यह केवल प्रतिस्पर्धात्मक असमानता का सवाल नहीं है, बल्कि एक संप्रभु डिजिटल अर्थव्यवस्था की नींव को अस्थिर करने का मामला है।

न तो स्थानीय दफ्तर, न शिकायत निवारण तंत्र

इन विदेशी क्रिप्टो प्लेटफॉर्म्स की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इनके पास भारत में न कोई पंजीकरण है, न शिकायत समाधान की व्यवस्था। नतीजा — भारतीय निवेशक जोखिम में हैं, और नियामकों के हाथ बंधे हुए हैं। यह ठीक वैसी ही स्थिति है जैसी 2021 में भारत ने सोशल मीडिया कंपनियों के साथ देखी थी, जिसके समाधान के रूप में आईटी नियमों के तहत शिकायत अधिकारी की अनिवार्यता लागू की गई।

अन्य क्षेत्रों में मौजूद हैं कठोर नियम

डिजिटल भुगतान, टेलीकॉम और प्रसारण जैसे क्षेत्रों में कंपनियों को भारतीय कार्यालय, डेटा स्टोरेज और स्थानीय अनुपालन का पालन अनिवार्य रूप से करना होता है। जबकि क्रिप्टो प्लेटफॉर्म्स तो डाटा और पैसा, दोनों को ही प्रभावित करते हैं। ऐसे में इनसे न्यूनतम अपेक्षा यह होनी चाहिए कि वे भारत में विधिक उपस्थिति दर्ज कराएं।

आगे का रास्ता: अनिवार्य पंजीकरण और स्थानीय उपस्थिति

समाधान स्पष्ट है — भारत में काम करने वाले हर क्रिप्टो प्लेटफॉर्म के लिए एक स्थानीय विधिक इकाई का गठन और एक स्थायी भौतिक कार्यालय खोलना अनिवार्य किया जाए। यूरोपीय संघ, जापान और सिंगापुर जैसे देशों में इस मॉडल को पहले ही लागू किया जा चुका है।

नियामकीय शून्यता से राष्ट्रीय जोखिम

यदि भारत इस दिशा में स्पष्ट और कड़े कदम नहीं उठाता, तो न केवल सरकार का राजस्व खतरे में रहेगा, बल्कि निवेशकों को ऐसे जोखिमों का सामना करना पड़ेगा जिनका न कोई समाधान होगा, न जवाबदेह संस्था।
भारत को यह संदेश स्पष्ट करना होगा — यदि आप भारतीय उपभोक्ताओं से व्यापार करते हैं, तो भारतीय कानून और निगरानी का पालन अनिवार्य है।

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