स्वतंत्रता दिवस विशेष: ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की ओर आत्मनिर्भरता का संकल्प

Prahlad Singh Patel

आज जब हम अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं, तब देश और दुनिया दोनों स्तरों पर हमारे सामने अनेक चुनौतियां खड़ी हैं। यह समय स्वयं को दृढ़, आत्मसंकल्पित और आत्मसंयमित करने का है।

अशांति से भरे इस दौर में भारत ही वह राष्ट्र है जो विश्व को शांति का मार्ग दिखा सकता है। यह वही पावन भूमि है जहां भगवान बुद्ध ने कहा था – “क्रोध को प्रेम से जीतो” और “अहिंसा परमो धर्म:”। भारत ने हमेशा इसी राह को अपनाया है।

स्वतंत्रता दिवस केवल उत्सव का दिन नहीं, बल्कि आत्ममंथन का अवसर है। आज दुनिया में रिश्तों में व्यापार खोजा जा रहा है और व्यापार के लिए युद्धभूमियां तैयार की जा रही हैं, जबकि भारत सदा से “वसुधैव कुटुंबकम” की भावना का पक्षधर रहा है।

भारत के युद्ध – मानवता की रक्षा के लिए

भारत ने इतिहास में अनेक युद्ध लड़े, लेकिन वे सभी धर्मयुद्ध रहे – मानवता और सद्भाव की रक्षा के लिए। श्रीमद्भगवद्गीता में युद्ध को केवल अंतिम विकल्प बताया गया है, जिसे सभी अहिंसक प्रयास विफल होने पर ही अपनाया जाए। यही नीति भारत ने पड़ोसी देशों के साथ भी अपनाई है।

हाल ही में पाकिस्तानी सेना के फ़ील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने अमेरिका में बयान दिया कि भारत के साथ भविष्य के युद्ध में यदि पाकिस्तान का अस्तित्व खतरे में पड़ा तो वह परमाणु युद्ध छेड़ देगा। इस पर मेरे आराध्य श्रीश्री बाबाश्री के वचन याद आते हैं – “पैशाचिक आदतें जब परंपरा बन जाती हैं, तो विकास विनाश में बदल जाता है।” दुर्भाग्य से पाकिस्तान आज इसी मानसिकता में जी रहा है और आर्थिक-सामाजिक रूप से पिछड़ता जा रहा है।

अटलजी का अडिग संदेश

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद स्पष्ट कहा था – “दुनिया की कोई ताकत हमें हमारे निर्धारित मार्ग से दूर नहीं कर सकती। राष्ट्र की एकता, अखंडता और सुरक्षा के लिए हम हर कुर्बानी देने को तैयार हैं।” यह संदेश केवल पाकिस्तान और चीन के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए था कि भारत शांति का समर्थक है, लेकिन अपनी सुरक्षा से कभी समझौता नहीं करेगा।

2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य

यह स्वतंत्रता दिवस नए संकल्प लेने का समय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘2047 तक विकसित भारत’ के विज़न को साकार करने के लिए पूरे देश का एकसूत्र में बंधना जरूरी है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भी कह चुके हैं कि हमारी प्रगति में कोई बाहरी शक्ति बाधा नहीं बन सकती, यदि रुकावट है तो वह आंतरिक है, और वह भी हमारे संकल्प से छोटी है।

अटलजी की कविता की पंक्तियां हमें प्रेरित करती हैं –
“न दैन्यं न पलायनम्”
भारत का स्पष्ट संदेश है, न झुकेंगे, न रुकेंगे। यही है ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ के प्रति आत्मनिर्भरता की सच्ची शुरुआत।

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