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एकदंत संकष्टी चतुर्थी 2025: इस विशेष पूजा विधि से करें भगवान गणेश की आराधना, जानें भोग, मंत्र और आरती
Dharm desk

संकष्टी चतुर्थी हर महीने भगवान गणेश की पूजा और व्रत के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। खासतौर पर जेष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को एकदंत संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है, जो इस साल 16 मई को पड़ रही है।
इस दिन विघ्नहर्ता और समस्त बाधाओं के नाशक भगवान गणेश की विशेष पूजा का विधान है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत और पूजा करने से जीवन के सभी संकट और दुःख दूर हो जाते हैं।
एकदंत संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि और महत्व
एकदंत संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश के एकदंता स्वरूप को समर्पित होता है। पंचांग के अनुसार, जेष्ठ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को यह व्रत रखा जाता है, जो भगवान गणेश के एकदंता नाम से जुड़ा है। यह व्रत खासकर महिलाओं द्वारा अपनी संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को रखने से सभी विघ्नों का नाश होता है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
पूजा की विधि
एकदंत संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लें। फिर पूजा स्थल की साफ-सफाई करें और गणेश जी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। मूर्ति को गंगाजल या शुद्ध जल से अभिषेक करें। भगवान को लाल या पीले वस्त्र पहनाकर हल्दी, चंदन और कुमकुम से श्रृंगार करें। उनकी पूजा में प्रिय दुर्वा, लाल एवं पीले फूल चढ़ाएं। इसके बाद दीपक और धूप प्रज्वलित कर आरती करें। इस दौरान ‘ॐ गं गणपतये नमः’ या ‘ॐ वक्रतुण्डाय हुं’ मंत्र का जाप करें। अंत में व्रत कथा पढ़ें और चंद्र उदय के समय भगवान को अर्घ्य दें।
श्री गणेश जी की आरती
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एकदंता दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूषक की सवारी॥
(आरती के अन्य श्लोक इसी प्रकार गाए जाते हैं...)
एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत का पौराणिक महत्व
एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान परशुराम ने एक बार भगवान गणेश पर अपने फरसे से वार किया था, जिससे उनका एक दांत टूट गया। तब से उन्हें ‘एकदंत’ कहा जाता है। इस दिन का व्रत और पूजा करने से जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं और संकटों का नाश होता है। इस व्रत से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं तथा परिवार में सुख-समृद्धि आती है।