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शिवलिंग के सामने तीन बार ताली बजाना क्यों होता है शुभ? जानिए धार्मिक, पौराणिक और वैज्ञानिक कारण
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हिंदू धर्म में हर परंपरा के पीछे कोई न कोई गूढ़ संदेश छिपा होता है। शिवलिंग के सामने तीन बार ताली बजाने की परंपरा भी केवल एक सांस्कृतिक रिवाज नहीं है, बल्कि इसका संबंध आत्मिक चेतना, श्रद्धा और ऊर्जा के संचार से है।
भारत के विभिन्न मंदिरों में विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा के दौरान भक्त यह परंपरा निभाते हैं। आइए जानते हैं इस अनोखी परंपरा के तीनों पहलुओं को विस्तार से।
तीन तालियां और उनका गहरा महत्व
1. पहली ताली – अपनी उपस्थिति दर्ज कराना
पहली ताली का उद्देश्य यह होता है कि भक्त स्वयं को भगवान शिव के सामने उपस्थित करता है। यह एक प्रकार का आह्वान है — “हे भोलेनाथ, मैं आपकी शरण में उपस्थित हूँ।” यह ताली पूजा की शुरुआत का संकेत देती है, जिससे मानसिक रूप से व्यक्ति शिवभक्ति में प्रवेश करता है।
2. दूसरी ताली – मनोकामना और दुखों की अभिव्यक्ति
दूसरी ताली में भक्त अपनी इच्छाएं, दुख और समस्याएं शिवजी के समक्ष प्रकट करता है। यह ताली एक याचना का रूप होती है, जिसमें वह शिव से मार्गदर्शन, कृपा और समाधान की अपेक्षा करता है।
3. तीसरी ताली – समर्पण और क्षमा याचना
तीसरी ताली सबसे गहन भाव लेकर आती है। इसमें भक्त अपने सभी पापों, भूलों और अहंकार को त्यागकर पूर्ण रूप से भगवान शिव को समर्पित करता है। यह आत्म-परिष्कार और क्षमा याचना का प्रतीक है।
पौराणिक कथाएं जो इस परंपरा को और पवित्र बनाती हैं
• रावण की कथा:
मान्यता है कि रावण ने शिव की भक्ति में तीन बार ताली बजाई थी, जिससे प्रसन्न होकर शिव ने उसे असीम बल और राजपाट का वरदान दिया।
• राम की कथा:
रामेश्वरम् में भगवान राम ने रेत से शिवलिंग बनाकर जब पूजा की थी, तब उन्होंने तीन बार ताली बजाकर अपनी उपस्थिति शिव के सामने प्रकट की थी।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: ताली से ऊर्जा और एकाग्रता का संचार
ताली बजाने से शरीर के एक्यूप्रेशर पॉइंट्स एक्टिव होते हैं, जिससे रक्त संचार सुधरता है और मस्तिष्क में ऊर्जा प्रवाहित होती है। यह पूजा के समय मानसिक एकाग्रता को बढ़ाता है और मन को स्थिर करता है, जिससे व्यक्ति गहराई से भक्ति में उतर पाता है।