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रायपुर में श्रद्धा और परंपरा की भव्य झलक: राज्यपाल व CM ने लगाई सोने की झाड़ू, निकली ऐतिहासिक रथयात्रा
Raipur, CG
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छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में शुक्रवार को भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का भव्य आयोजन हुआ, जिसमें ओडिशा के पुरी की परंपरा को जीवंत कर दिया गया। राज्यपाल रमेश बैका और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने गायत्री नगर स्थित श्रीजगन्नाथ मंदिर में विशेष पूजा अर्चना कर ‘छेरापहरा’ की परंपरा निभाई — यानी भगवान के रथ का मार्ग स्वर्ण झाड़ू से साफ किया।
मुख्यमंत्री साय ने इस अवसर पर प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि भगवान जगन्नाथ किसानों के रक्षक हैं, जिनकी कृपा से वर्षा होती है और अन्न भंडार भरते हैं। उन्होंने प्रदेश में समृद्धि और शांति की कामना की।
सदियों पुरानी परंपरा, रायपुर की सड़कों पर उमड़ा जनसैलाब
गायत्री नगर, टुरी हटरी और सदरबाजार स्थित जगन्नाथ मंदिरों से पारंपरिक शैली में रथयात्रा निकाली गई। खास बात यह रही कि इन रथों का निर्माण पुरी की तरह दसपल्ला के जंगलों की लकड़ियों से किया गया। महाप्रभु जगन्नाथ नंदीघोष रथ पर, भाई बलभद्र तालध्वज पर और बहन सुभद्रा देवदलन रथ पर सवार हुए। रथों को रंग-बिरंगे छत्रों और नारियल की रस्सियों से सजाया गया।
टुरी हटरी के 500 साल पुराने मंदिर की संकरी गलियों में चलते रथ को सुरक्षित रूप से ले जाने के लिए उसमें स्टीयरिंग और ब्रेक लगाए गए। वहीं सदरबाजार में भी लगभग 200 वर्षों से रथयात्रा की परंपरा जारी है।
नेत्र उत्सव और सेवा की परंपरा
रथयात्रा से पूर्व ‘नेत्र उत्सव’ मनाया गया, जिसमें भगवान जगन्नाथ की बीमारी के प्रतीक रूप में सेवा की गई। कहा जाता है कि अधिक स्नान के कारण भगवान अस्वस्थ हो जाते हैं, इसलिए उन्हें औषधीय भोग अर्पित किया जाता है।
इतिहास से जुड़ी आस्था की डोर
करीब 5000 साल पहले शुरू हुई यह परंपरा राजा इंद्रद्युम्न के प्रयासों से जुड़ी है, जिन्होंने समुद्र से मिली दिव्य लकड़ियों से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां बनवाईं। मूर्तियों का निर्माण विश्वकर्मा ने एकांत में किया था, और अधूरी मूर्तियों को ही भगवान का रूप मानकर मंदिर में स्थापित किया गया।
तभी से हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को भगवान अपनी जन्मभूमि की यात्रा पर निकलते हैं — यही है रथयात्रा की आध्यात्मिक गाथा।