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जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया की जयंती पर ‘एक भाव, एक जुराव’ कार्यक्रम, भावुक हुए भूपेश बघेल और अनुज शर्मा
Raipur, CG
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जनकवि स्व. लक्ष्मण मस्तुरिया की 76वीं जयंती के अवसर पर शनिवार को रायपुर प्रेस क्लब में एक विशेष कार्यक्रम ‘पुरखा के सुरता – एक भाव, एक जुराव’ का आयोजन किया गया। इस भावनात्मक आयोजन में राज्य के राजनेता, साहित्यकार, पत्रकार और सांस्कृतिक क्षेत्र के दिग्गज शामिल हुए। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, खेल एवं युवा कल्याण मंत्री टंकराम वर्मा, विधायक अनुज शर्मा, फिल्म निर्देशक सतीश जैन और ‘मोर चिन्हारी छत्तीसगढ़ी मंच’ के संरक्षक नंदकिशोर शुक्ल प्रमुख रूप से उपस्थित थे।
छत्तीसगढ़ी अस्मिता पर हुई चर्चा, मस्तुरिया जी के गीतों का हुआ गायन
कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ी भाषा, संस्कृति और स्वाभिमान के मुद्दों पर गंभीर संवाद हुआ। मस्तुरिया जी के प्रसिद्ध गीतों की प्रस्तुति ने वातावरण को भावविभोर कर दिया। वक्ताओं ने जनकवि के साथ बिताए पलों को साझा करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी।
"उनके सपनों को पूरा करना ही सच्ची श्रद्धांजलि" – नंदकिशोर शुक्ल
मुख्य वक्ता नंदकिशोर शुक्ल ने कहा कि मस्तुरिया जी के गीत गाने या आयोजन करने से ही कार्य पूरा नहीं होता। जब तक छत्तीसगढ़ी में सरकारी कार्य नहीं होंगे, छत्तीसगढ़ी स्कूल नहीं खुलेंगे, तब तक उनके सपनों को साकार नहीं किया जा सकेगा। उन्होंने जनजागरण के लिए ‘मोर संग चलव’ अभियान में सबको शामिल होने का आह्वान किया।
"उनके गीतों से हम बड़े हुए" – टंकराम वर्मा
मंत्री टंकराम वर्मा ने कहा कि भले ही मस्तुरिया जी से व्यक्तिगत भेंट नहीं हुई, पर उनके गीतों को सुनते-सुनते ही वे बड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि मस्तुरिया के गीत खेतों में काम करने से लेकर जीवन के हर मोड़ पर साथ रहे।
"कवि सम्मेलनों में रात-रात उन्हें सुनता रहा" – भूपेश बघेल
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भावुक होते हुए कहा कि वे चंदैनी-गोंदा जैसे कार्यक्रमों में मस्तुरिया जी को सुनने जाया करते थे। उन्होंने कहा कि मस्तुरिया जी के गीतों ने न केवल कलाकारों को दिशा दी, बल्कि नेताओं को चुनाव जिताने तक की ताकत रखी।
"मुझे मस्तुरिया जी ने गढ़ा" – अनुज शर्मा और सतीश जैन की स्मृतियाँ
विधायक और गायक अनुज शर्मा ने कहा कि उनका मस्तुरिया जी से पारिवारिक रिश्ता था। वे जो कुछ भी आज हैं, उसमें मस्तुरिया जी की प्रेरणा और आशीर्वाद है। वहीं, निर्देशक सतीश जैन ने कहा कि उनकी पहली फिल्म को मस्तुरिया जी ने ही पहचान दिलाई। उन्होंने उन्हें ‘संस्थापक’ की तरह याद किया।