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शुभांशु शुक्ला की अंतरिक्ष यात्रा का अनुभव: "फोन भारी लगा, लैपटॉप तैरता रहेगा ऐसा लगा"
Jagran Desk

भारत के एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष से लौटने के बाद धरती पर अनूठे अनुभव साझा किए हैं। शुक्रवार को आयोजित एक वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने अपने 20 दिवसीय स्पेस मिशन की रोमांचक झलक दी।
18 दिन इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में बिताने के बाद अब वे भारत वापसी की तैयारी कर रहे हैं।
शुक्ला ने बताया कि पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण के साथ दोबारा तालमेल बैठाना कितना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। उन्होंने कहा, “मैंने जब मोबाइल उठाया तो वो भारी लग रहा था। एक बार तो लैपटॉप बिस्तर से नीचे खिसका दिया, ये सोचकर कि वो हवा में तैरेगा।”
भारत की दूसरी अंतरिक्ष उड़ान की शुरुआत
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान शुभांशु ने यह भी कहा, “41 साल बाद एक भारतीय अंतरिक्ष से लौटा है। यह केवल एक यात्रा नहीं थी, बल्कि भारत की दूसरी उड़ान की शुरुआत है। अब हम सिर्फ उड़ने नहीं, बल्कि नेतृत्व करने आए हैं।” उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष में उनका सबसे यादगार पल वो था जब उन्होंने 28 जून को प्रधानमंत्री मोदी से बात की और उनके पीछे तिरंगा लहरा रहा था।
ISS में किए गए महत्वपूर्ण प्रयोग
शुक्ला एक्सियम-4 मिशन के तहत ISS पर पहुंचे थे। भारत सरकार ने इस मिशन की एक सीट के लिए 548 करोड़ रुपये खर्च किए। इस मिशन में उन्होंने भारतीय शिक्षण संस्थानों द्वारा भेजे गए 7 वैज्ञानिक प्रयोग और NASA के साथ मिलकर 5 अन्य प्रयोग किए। इनमें जैविक अध्ययन और दीर्घकालिक मानव अंतरिक्ष मिशनों के लिए डेटा संग्रह शामिल था। यह मिशन भारत के गगनयान कार्यक्रम के लिए एक मजबूत आधार तैयार कर रहा है।
फिजियोथेरेपी से हो रही है रिकवरी
मिशन पूरा होने के बाद शुभांशु 14 जुलाई को पृथ्वी पर लौटे थे, हालांकि इसमें 4 दिन की देरी हुई। अब उन्हें डॉक्टर्स की निगरानी में फिजियोथेरेपी दी जा रही है। उनके पिता ने बताया कि शरीर की पूरी क्षमता वापस लाने में कुछ समय लग सकता है।
ISS: विज्ञान और सहयोग का प्रतीक
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) दुनिया की पांच प्रमुख स्पेस एजेंसियों का संयुक्त प्रयास है, जो पृथ्वी की निचली कक्षा में 28,000 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से घूमता है। हर 90 मिनट में यह धरती की एक परिक्रमा पूरी करता है। यहां वैज्ञानिक माइक्रोग्रैविटी में महत्वपूर्ण रिसर्च करते हैं।
शुभांशु के अनुभव और इस मिशन से प्राप्त ज्ञान न केवल भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई दिशा देंगे, बल्कि भारत को अंतरिक्ष विज्ञान में वैश्विक नेतृत्व की ओर अग्रसर भी करेंगे।