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श्रीकृष्ण की गीता शिक्षा: फल की चिंता छोड़ कर्म करें
Jeevan Mantra

जीवन में सुख-दुख आते-जाते रहते हैं। आज की तेज़-तर्रार जिंदगी में रिश्तों का असंतुलन, काम का बढ़ता दबाव और अनिश्चितता हमें तनाव की ओर ले जाती है। ऐसे में श्रीकृष्ण के जीवन और उनके उपदेशों से हमें यह सीख मिलती है कि हम अपने दुखों और परेशानियों से कैसे निपट सकते हैं।
परेशानियों से भागने के बजाय उनका साहसपूर्वक सामना करें
महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन अपने ही संबंधियों को युद्धभूमि में देखकर असमंजस और विषाद में थे, तब उन्होंने अपने धनुष-बाण रख दिए। उस वक्त श्रीकृष्ण ने उन्हें कर्मयोग का उपदेश देते हुए कहा, “तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फल की चिंता मत करो।”
यह सीख आज के आधुनिक जीवन में भी उतनी ही प्रासंगिक है। जब हम किसी कठिनाई या तनाव में हों, तो भागना समाधान नहीं। हमें अपनी जिम्मेदारी समझकर धैर्य और साहस के साथ समस्याओं का सामना करना चाहिए। परिणाम की चिंता किए बिना अपने कर्मों पर फोकस रखें, क्योंकि सही कर्म ही सकारात्मक परिणाम लाते हैं।
रिश्तों में सच्चाई, समानता और संतुलन बनाए रखें
श्रीकृष्ण ने द्वारका के राजा होते हुए भी अपने गरीब मित्र सुदामा के प्रति सच्चा प्रेम और सम्मान दिखाया। जब सुदामा उनसे मिलने आए, तो श्रीकृष्ण ने उनके चरण धोए और उन्हें गले लगाया।
यह हमें सिखाता है कि रिश्तों में दिखावे, पद या आर्थिक स्थिति से ऊपर उठकर करुणा, सच्चाई और समानता का होना आवश्यक है। सही और संतुलित संबंधों से ही मन को स्थिरता और शांति मिलती है।
शांति के प्रयास और न्याय के लिए दृढ़ता से लड़ाई
महाभारत युद्ध से पहले श्रीकृष्ण ने शांति दूत के रूप में कौरवों के पास जाकर विवाद सुलझाने की पूरी कोशिश की। लेकिन जब दुर्योधन ने शांति का प्रस्ताव ठुकरा दिया और शांति का कोई विकल्प नहीं बचा, तब श्रीकृष्ण ने युद्ध के लिए तैयार हो गए।
यह हमें यह सिखाता है कि जहां तक संभव हो, विवादों से बचना और शांति बनाए रखना चाहिए। परंतु जब शांति असंभव हो, तो नीतिगत समझदारी और साहस से सही फैसले लेकर न्याय की लड़ाई लड़नी चाहिए।