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गणेश जी को दूर्वा क्यों चढ़ाई जाती है? जानें धार्मिक महत्व और पौराणिक कथा
Dharm desk

गणेश चतुर्थी का पर्व देशभर में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस बार यह महोत्सव 27 अगस्त 2025 से शुरू होगा। दस दिनों तक घर-घर बप्पा की स्थापना कर विधिवत पूजा-अर्चना की जाएगी और अंतिम दिन धूमधाम से विसर्जन होगा।
गणेश पूजा में फूल, मिठाई और मोदक के साथ-साथ दूर्वा घास का विशेष महत्व है। मान्यता है कि बप्पा की आराधना दूर्वा के बिना अधूरी मानी जाती है।
गणेश जी और दूर्वा की पौराणिक कथा
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, एक बार भगवान गणेश ने अनलासुर नामक राक्षस का संहार किया और उसे निगल लिया। इससे उनके पेट में भयंकर जलन होने लगी। अनेक उपायों के बाद भी जब यह पीड़ा कम नहीं हुई तो ऋषि कश्यप ने उन्हें दूर्वा खाने की सलाह दी। जैसे ही गणेश जी ने दूर्वा ग्रहण की, उनके पेट की जलन शांत हो गई। तभी से दूर्वा उनकी प्रिय मानी जाती है और पूजा में इसे अर्पित करने की परंपरा शुरू हुई।
दूर्वा चढ़ाने के लाभ
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विघ्न-बाधाओं से मुक्ति: गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने से जीवन की रुकावटें और कठिनाइयाँ दूर होती हैं।
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सुख-समृद्धि: दूर्वा अर्पित करने से घर में धन, वैभव और खुशहाली आती है।
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बुद्धि और ज्ञान: गणेश जी को बुद्धि का देवता माना गया है, इसलिए दूर्वा चढ़ाने से ज्ञान और विवेक की वृद्धि होती है।
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मानसिक शांति और स्वास्थ्य लाभ: दूर्वा को शीतलता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है, जो मन को शांत और शरीर को स्वस्थ बनाए रखता है।
दूर्वा अर्पित करने की विधि
गणेश जी की पूजा में दूर्वा अर्पित करते समय 11 जोड़े दूर्वा (कुल 22 दूर्वा) का गुच्छा बनाना चाहिए। इसे स्वच्छ जल से धोकर गणेश जी के चरणों में समर्पित करें। पूजा के समय “श्री गणेशाय नमः दूर्वांकुरान् समर्पयामि” मंत्र का उच्चारण करना शुभ माना जाता है। दूर्वा को बप्पा के कान या माथे पर रखने की परंपरा विशेष फलदायी मानी जाती है।