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महाकाल के श्रृंगार में छलका भक्ति का सागर: 4 जुलाई को भस्म आरती में निहारा अलौकिक रूप
Ujjain, MP

शिवनगरी उज्जैन की पावन सुबह, जब चंद्रमा अस्त हो रहा था और सूरज की पहली किरणें क्षितिज पर उतरने को थीं, उसी क्षण उज्जैन के प्राचीन महाकालेश्वर मंदिर में भक्ति की लहरें गूंज रही थीं। शुक्रवार की सुबह बाबा महाकाल की भस्म आरती के लिए श्रद्धालुओं का जनसागर मंदिर परिसर में उमड़ पड़ा।
चारों ओर "जय महाकाल" के गगनभेदी जयघोषों के बीच जब शिवलिंग पर चढ़ी भस्म और चंदन से बाबा का अलौकिक शृंगार हुआ, तो मानो साक्षात शिव ने स्वयं धरा पर अवतरण लिया हो।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के इस विशेष दर्शन में आज उनका मुखमंडल सुनहरे, लाल और केसरिया रंगों से सुसज्जित था। चांदी का मुकुट, रत्नों से जड़ा त्रिपुंड और रुद्राक्ष की माला के साथ बाबा का स्वरूप हर भक्त के हृदय में बस गया।
पंचामृत स्नान के बाद बाबा को गुलाब, गेंदा और मालती के फूलों से सजाया गया। श्वेत और पीत वस्त्रों से सजे बाबा के इस रूप को देखकर श्रद्धालु विह्वल हो उठे। विशेष भोग में लड्डू, गुड़, फल, पंचमेवा और तुलसीदल अर्पित किया गया। आरती के समय मंदिर परिसर में ढोल-नगाड़ों और शंखध्वनि से वातावरण गूंज उठा।
भस्म आरती की पौराणिक परंपरा, जिसमें चिता की भस्म से महाकाल का अभिषेक होता है, यह केवल उज्जैन में ही संभव है। मान्यता है कि यह भस्म जीवन की नश्वरता और मृत्यु पर महाकाल की अमर सत्ता का स्मरण कराती है। यही कारण है कि हर दिन इस आरती के दर्शन को हजारों भक्त देश-विदेश से उज्जैन पहुंचते हैं।