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ससुराल में महिला की आत्महत्या पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: पति और ससुर दोषमुक्त, कोर्ट ने कहा- क्रोध में कहे गए शब्द ‘उकसाना’ नहीं माने जा सकते
Bilaspur, CG
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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक बहु की आत्महत्या के मामले में उसके पति और ससुर को दोषमुक्त कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि क्रोध या गुस्से में कहे गए अपशब्दों को आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण (उकसाने) की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। इस फैसले से निचली अदालत द्वारा सुनाई गई सात साल की सश्रम सजा और जुर्माने को निरस्त कर दिया गया।
13 साल पुराना मामला, मृतका ने मजिस्ट्रेट के सामने दिए थे बयान
घटना दिसंबर 2013 की है, जब रायपुर के एक अस्पताल में 80% झुलसी हुई महिला को भर्ती कराया गया था। 5 जनवरी 2014 को उसकी मृत्यु हो गई। मरने से पहले उसने कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए बयान में कहा था कि पति और ससुर के तानों और चरित्र शंका से आहत होकर उसने खुद को आग लगाई।
परिजनों ने भी लगाए थे मानसिक प्रताड़ना के आरोप
मृतका के माता-पिता और भाई ने भी आरोप लगाया था कि पति-पत्नी के बीच अक्सर झगड़े होते थे, और महिला मानसिक रूप से प्रताड़ित रहती थी। इसी के आधार पर निचली अदालत ने पति और ससुर को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत दोषी मानते हुए सजा सुनाई थी।
हाईकोर्ट की टिप्पणी – तिरस्कारपूर्ण बातें ‘उकसाना’ नहीं
हाईकोर्ट में अपील के दौरान न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु ने कहा कि यदि तिरस्कार या अपमानजनक भाषा मान भी ली जाए, तो भी यह साबित नहीं होता कि आरोपी ने मृतका को आत्महत्या के लिए प्रेरित किया। आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण को साबित करने के लिए यह आवश्यक है कि आरोपी ने जानबूझकर, सोची-समझी साजिश या दबाव के तहत मृतका को आत्महत्या करने पर मजबूर किया हो।
‘शादी को हो चुके थे 12 साल, नहीं लागू होता धारा 113-A का अनुमान’
कोर्ट ने कहा कि चूंकि विवाह को 12 वर्ष से अधिक हो चुके थे, इसलिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113-A के तहत 7 वर्षों के भीतर आत्महत्या पर वैधानिक अनुमान इस केस में नहीं लगाया जा सकता।
दुष्प्रेरण सिद्ध न होने पर किया गया दोषमुक्त
कोर्ट ने साफ किया कि अभियोजन यह सिद्ध नहीं कर पाया कि आरोपियों ने आत्महत्या के लिए महिला को तत्काल या निरंतर दबाव या मानसिक यातना दी हो। गुस्से या आवेश में कहे गए सामान्य अपशब्द या पारिवारिक कलह, जब तक जानबूझकर उकसाने की मंशा से न हों, आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण नहीं माने जा सकते।