20 साल बाद मंच साझा कर बोले उद्धव-राज: ‘मराठी अस्मिता’ ही हमारी पहचान, हिंदी थोपने का विरोध

Jagran Desk

महाराष्ट्र की राजनीति में शनिवार का दिन ऐतिहासिक बन गया, जब दो दशकों बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) अध्यक्ष राज ठाकरे एक ही मंच पर नजर आए।

दोनों नेता मुंबई के वर्ली डोम में ‘मराठी एकता विजय रैली’ के मंच से एकजुट दिखाई दिए। रैली का उद्देश्य राज्य में मराठी भाषा, संस्कृति और अस्मिता की रक्षा को लेकर जनता को एकजुट करना था।

इस मंच पर न कोई पार्टी का झंडा था, न ही कोई चुनावी प्रचार। राज ठाकरे ने कहा, “हम 20 साल बाद एक साथ मंच पर आए हैं। बालासाहेब भी यह नहीं कर पाए, जो देवेंद्र फडणवीस ने कर दिखाया – हमें एक कर दिया।” उन्होंने यह भी कहा, “आपके पास विधानसभा में ताकत है, लेकिन हमारे पास सड़कों पर ताकत है।”

 उद्धव बोले – मराठी को दरकिनार करना स्वीकार नहीं

उद्धव ठाकरे ने सरकार द्वारा हिंदी को अनिवार्य बनाने के आदेशों का ज़िक्र करते हुए कहा, "हम किसी भाषा के विरोध में नहीं हैं, लेकिन हिंदी थोपने की कोशिश को बर्दाश्त नहीं करेंगे। महाराष्ट्र की आत्मा मराठी में बसती है।" उन्होंने बताया कि सरकार ने जो आदेश 16 और 17 अप्रैल को जारी किए थे, वे विपक्ष के दबाव के बाद वापस लिए गए।

उन्होंने आगे कहा, “यह रैली अब विरोध नहीं, विजय रैली है। हमारी एकता ने सरकार को झुकने पर मजबूर किया।”

  राजनीति से परे मराठी पहचान की लड़ाई

रैली की खास बात यह रही कि इसे किसी राजनीतिक दल के बैनर के तहत नहीं किया गया। कांग्रेस जैसे अन्य विपक्षी दल इसमें शामिल नहीं हुए, लेकिन उद्धव और राज ने स्पष्ट किया कि यह एक राजनीतिक मंच नहीं, बल्कि 'मराठी अस्मिता का आंदोलन' है। मंच से दोनों नेताओं ने यह भी संकेत दिया कि भविष्य में मराठी हितों के लिए सभी दल साथ आ सकते हैं।

  पृष्ठभूमि: क्यों हुई यह रैली?

महाराष्ट्र सरकार ने अप्रैल 2025 में दो ऐसे आदेश जारी किए थे, जिनमें हिंदी को कुछ सरकारी और शैक्षणिक प्रक्रियाओं में अनिवार्य बनाने की बात कही गई थी। इस पर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर तीव्र विरोध हुआ। अंततः सरकार ने 29 जून को आदेशों को रद्द कर दिया।

इसके बाद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने 5 जुलाई को प्रस्तावित विरोध रैली को ‘विजय रैली’ का स्वरूप दिया, जिसमें मराठी भाषा और संस्कृति के पक्ष में जनजागरण किया गया।

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