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'संकल्प में विकल्प नहीं होता'—धैर्यशील नेतृत्व की मिसाल प्रहलाद पटेल
Geet Dixit

मध्यप्रदेश की राजनीति में एक ऐसा नाम, जो अपने साथ न केवल सामाजिक प्रतिबद्धता और विकास की योजनाएं लेकर चलता है, बल्कि आध्यात्मिकता और निस्वार्थ सेवा की मिसाल भी कायम करता है – वह नाम है प्रहलाद सिंह पटेल।
आज जब प्रहलाद पटेल 28 जून को अपना जन्मदिन मना रहे हैं, तब उन्हें केवल एक राजनेता के रूप में नहीं, बल्कि एक विचारधारा, एक कर्मयोगी और एक संकल्पशील जनसेवक के रूप में देखा जा रहा है।
राजनीति के साथ सेवा और साधना
गोटेगांव के एक साधारण किसान परिवार में जन्मे प्रहलाद पटेल ने छात्र राजनीति से अपनी यात्रा शुरू की और आज केंद्रीय व राज्यस्तरीय जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं। वे उन विरले नेताओं में से हैं जिन्होंने बालाघाट, सिवनी, छिंदवाड़ा और दमोह से लोकसभा चुनाव लड़ा और पाँच बार सांसद चुने गए। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार से लेकर नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल तक, वे कोयला, संस्कृति, जल शक्ति, ग्रामीण विकास जैसे कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं।
साधक की तरह की नर्मदा परिक्रमा
उनकी पहचान सिर्फ राजनीतिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं है। वो नर्मदा भक्त हैं, तपस्वी हैं। 1994-96 और फिर 2005 में उन्होंने हजारों किलोमीटर लंबी नर्मदा परिक्रमा की, गर्मी हो या सर्दी, उनका तप नहीं टूटा। धर्म, प्रकृति और सेवा उनके जीवन के स्थायी आधार हैं।
जब सेवा को धर्म माना
1997 में जब जबलपुर में भूकंप आया, तब प्रहलाद पटेल ने राहत कार्यों का नेतृत्व किया। उन्होंने गाँव को गोद लिया और पुनर्निर्माण करवाया। इसी तरह 1999 में चमोली भूकंप और बालासागर विस्थापन में उन्होंने मानवीय संवेदनाओं से भरी सेवा की।
समाज के लिए गौसेवा और नशा विरोधी अभियान
वे गौसेवा को अपना धर्म मानते हैं। 2016 में उन्होंने जरारूधाम में एक गौ अभयारण्य बनवाया जहाँ बीमार और बेसहारा गायों की सेवा की जाती है। वे पूर्ण शाकाहारी हैं, लहसुन-प्याज तक नहीं खाते और नशे के सख्त विरोधी हैं। उन्होंने छात्र जीवन से ही शराब और नशे के खिलाफ आंदोलन शुरू किए और आज भी उसी दृढ़ता से उस पर डटे हैं।
आध्यात्मिक गुरुओं के प्रति समर्पण
प्रहलाद पटेल अपने गुरु श्री श्री बाबा श्री के अनन्य भक्त हैं। उनकी शिक्षाओं को वे अपने भाषणों में उद्धृत करते हैं। वे मानते हैं – "संकल्प में विकल्प नहीं होता।" यही मंत्र उन्हें हर कठिनाई में रास्ता दिखाता है।
पंचायतों को बना रहे हैं आत्मनिर्भर
पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री के रूप में उन्होंने पंचायतों को मजबूत करने के लिए कई योजनाएं लागू की हैं। जल स्रोतों के संरक्षण के लिए ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ चला रहे हैं। पंचायत भवनों, सामुदायिक परिसरों के निर्माण से लेकर सरपंचों को वित्तीय अधिकार देने तक, उन्होंने स्थानीय शासन को सशक्त किया है।
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