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“कुर्सी बचाने के लिए लगाई गई थी इमरजेंसी, यह पूरी दुनिया जानती है” – अमित शाह
Jagran Desk

आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली में आयोजित ‘संविधान हत्या दिवस – 2025’ कार्यक्रम में देश के लोकतंत्र पर लगे सबसे बड़े कलंक को याद किया। उन्होंने इस अवसर पर ‘The Emergency Diaries – Years that Forged a Leader’ पुस्तक का विमोचन किया और युवाओं से इसे अवश्य पढ़ने की अपील की।
अमित शाह ने कहा कि वर्ष 1975 में आपातकाल का कारण राष्ट्र की सुरक्षा नहीं, बल्कि इंदिरा गांधी की डगमगाती सत्ता थी। उन्होंने कहा, “पूरी दुनिया जानती है कि देश खतरे में नहीं था, उनकी कुर्सी खतरे में थी। इसलिए 25 जून 1975 को देश को जेल में बदल दिया गया।”
मोदी ने दिया ‘संविधान हत्या दिवस’ नाम
शाह ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपातकाल की स्मृति को ‘संविधान हत्या दिवस’ नाम दिया ताकि आने वाली पीढ़ियां इसे भूलें नहीं। उन्होंने कहा कि ये शब्द कठोर जरूर हैं, लेकिन उस दौर की भयावहता को दिखाने के लिए ऐसे ही शब्द उपयुक्त हैं।
24 साल की उम्र में मोदी थे भूमिगत कार्यकर्ता
गृह मंत्री ने आपातकाल के दौरान नरेंद्र मोदी की भूमिका को याद करते हुए बताया कि उस समय वे मात्र 24-25 साल के थे। वे नानाजी देशमुख के मार्गदर्शन में गुजरात में भूमिगत रहकर साधु, सरदार और हिप्पी जैसे भेष बदलकर सरकार के विरोध में कार्य कर रहे थे।
12 जून को कोर्ट ने किया था इंदिरा का चुनाव रद्द
शाह ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 12 जून 1975 के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित किया गया था और 6 वर्षों तक चुनाव न लड़ने का आदेश दिया गया था। उसी दिन गुजरात में जनता मोर्चा की जीत ने कांग्रेस की जड़ें हिला दी थीं।
10 हजार से अधिक लोगों को जेल में डाला गया
आपातकाल के पहले ही दिन रातभर में 10 हजार से ज्यादा राजनीतिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। पूरे देश को एक खुली जेल में तब्दील कर दिया गया था।
“देश की आत्मा को गूंगा और कलम से स्याही छीन ली गई थी”
शाह ने कहा कि उस दौर में न्यायपालिका के कान बंद कर दिए गए, मीडिया की आवाज दबा दी गई और लेखकों की कलम से स्याही छीन ली गई थी। आज की पीढ़ी को उस काले दौर की सच्चाई जाननी जरूरी है ताकि लोकतंत्र की कीमत समझी जा सके।