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एएमआर पर राष्ट्रीय कार्यशाला: ‘मौन महामारी’ से निपटने में मीडिया की केंद्रीय भूमिका
Jagran Desk

देश की राजधानी में आज प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में ‘एएमआर: मौन महामारी – मीडिया तोड़े ये चुप्पी’ शीर्षक से एक महत्त्वपूर्ण मीडिया कार्यशाला आयोजित हुई।
इस आयोजन का नेतृत्व रीएक्ट एशिया पैसिफिक ने किया, जिसका उद्देश्य एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस (एएमआर) के खतरे पर पत्रकारों को प्रशिक्षित करना और इसकी जिम्मेदार रिपोर्टिंग को बढ़ावा देना था।
विशेषज्ञों ने बताया कि एएमआर, यानी दवाओं के प्रति बढ़ती प्रतिरोधकता, अब वैश्विक स्वास्थ्य संकट बन चुकी है। 2021 में इसके कारण करीब 47 लाख लोगों की मौत हुई, जिनमें 11 लाख की मौत सीधे एएमआर की वजह से मानी गई। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो 2050 तक यह आंकड़ा 3.9 करोड़ तक पहुंच सकता है।
कार्यशाला की शुरुआत डॉ. एस.एस. लाल (निदेशक, रीएक्ट एशिया पैसिफिक) के प्रेरक संबोधन से हुई। उन्होंने मीडिया को ‘खामोशी तोड़ने वाला योद्धा’ बताते हुए कहा कि जागरूकता फैलाने में पत्रकारों की भूमिका निर्णायक है।
इसके बाद, एक भावनात्मक सत्र में डॉ. नरेंद्र सैनी (आईएमए) ने भक्ति चौहान और पूजा मिश्रा के अनुभवों को साझा किया। इन अनुभवों के माध्यम से बताया गया कि एएमआर केवल मेडिकल संकट नहीं, बल्कि सामाजिक असमानताओं से जुड़ी चुनौती भी है।
एक पैनल चर्चा में डॉ. सम प्रसाद, डॉ. संगीता शर्मा, डॉ. चंचल भट्टाचार्य, राजेश्वरी सिन्हा और सतीश सिन्हा ने वन हेल्थ दृष्टिकोण की उपयोगिता पर जोर दिया, जिसमें मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य का समन्वयात्मक विचार होता है।
कार्यशाला में यह भी बताया गया कि एएमआर से निपटने के लिए केवल दवाओं पर निर्भरता नहीं, बल्कि साफ-सफाई, टीकाकरण, जांच और संक्रमण नियंत्रण जैसे पहलुओं को सुदृढ़ करना जरूरी है।
डॉ. सरबजीत सिंह चड्ढा और डॉ. टिकेश बिसेन ने मजबूत स्वास्थ्य प्रणाली और डायग्नोस्टिक्स की महत्ता को रेखांकित किया, वहीं डॉ. सलमान खान ने वैज्ञानिक रिपोर्टिंग के भरोसेमंद स्रोतों की जानकारी साझा की।
कार्यक्रम के अंत में एएमआर मीडिया एलायंस (भारत चैप्टर) की शुरुआत की गई, जिसकी अगुवाई पत्रकार बॉबी रमाकांत ने की। उन्होंने समापन के दौरान कहा कि “अगर मीडिया मौन रहेगा, तो एएमआर की आवाज़ और भी धीमी हो जाएगी।”
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